ग़ज़ल
तुम मुझे लगती बहुत ही प्यारी हो
सच-सच बताओ क्या तुम बिहारी हो
अब तो होने लगा है प्यार भी तुमसे
लगता है फ़नां होने की बारी हमारी हो
जो भी आया खुरच कर घायल कर गया
जैसे हमारा दिल इमारत सरकारी हो
भर जाते पेट नेताओं के भाषण से ही
जब महंगाई के साथ बेरोजगारी हो
लिखेंगे ग़ज़ल हम अपनी मर्ज़ी से ही
दुश्मन तुम या सरकार तुम्हारी हो
— आलोक कौशिक