ग़ज़ल
हादसों पर हादसे होते रहे
फिर भी हम ये जिंदगी ढोते रहे
किस तरह मिलती उन्हे अमराइयाँ
जो बबूलों की फसल बोते रहें
कोहरे में कैद जब सूरज हुआ
दोपहर तक लोग सब सोते रहे
यातना हालात या कहिये नियति
आप तो हल मेँ हमें जोते रहे
देखकर झरनो में बहने की अदा
बेसबब हम उम्र भर रोते रहे
— मनोज श्रीवास्तव