विश्व पर्यावरण संतुलन में भारत की महती भूमिका
वैश्विक पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति को अगर सुधारने का समय से यथेष्ठ प्रयास नहीं किया गया, तो पर्यावरण की बिगड़ती सूरत किसी भी राजनैतिक लकीर खींचकर देश और राष्ट्र की सीमाओं को विध्वंस करते हुए समूची पृथ्वी के मानवप्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल ही इसके चपेट में आ जायेगा। अतः हम समस्त मानवों का यह परम् कर्तव्य है कि हम अपनी भरण-पोषण करने वाली पृथ्वी को बचाने के लिए वे सारे कर्तव्य करें, जो उसे और अधिक प्रदूषित न करे। इस हेतु स्पेन की राजधानी मेड्रिड में कॉप 25 सम्मेलन से जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 57 देश जो सबसे ज्यादे कार्बन उगल रहे थे, उनमें से 21 देश उसे कम करने के लिए ईमानदारी से सार्थक प्रयास करते दिख रहे हैं वे इस हेतु गैरपरंपरागत उर्जा श्रोतों जैसे सौर उर्जा और पवन उर्जा से अपना काम चलाने का सद् प्रयास कर रहे हैं।
इन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले 10 देशों में स्वीडन, डेनमार्क और भारत के साथ मोरक्को जैसा छोटा देश भी अपना उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है, वह अपने कुल उर्जा जरूरत का 43 प्रतिशत सौर उर्जा से प्राप्त कर रहा है। इस रिपोर्ट में दुनिया के अमीर और ताकतवर समझे जाने वाले देशों यथा आस्ट्रेलिया, सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देश वैश्विक पर्यावरण संतुलन के लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने के मामले में अपनी गैरजिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किए हुए हैं।
इस धरती के प्रकृति और पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान पहुँचाने वाले इस धरती के ऐश्वर्यशाली और सम्पन्न देश अगर ये सोचते हों कि वैश्विक पर्यावरण के ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले दुष्प्रभाव से वे अछूते रहेंगे, तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है, क्योंकि अमेरिका के ही कोलोराडो यूनिवर्सिटी और डार्टमाउथ कॉलेज के वैज्ञानिकों ने समूचे विश्व को चेतावनी देते हुए यह बताया है कि ‘अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन से पैदा ग्लोबल वार्मिंग के इस दुनिया पर दुष्प्रभाव पड़ना शुरू हो गया है ‘, उदाहरणार्थ पहली बार दुनिया के सबसे बड़े जलप्रपात जांबिया के विक्टोरिया प्रपात सूखने के कग़ार पर है व ग्रीनलैंड की 90 प्रतिशत बर्फ पिघल चुकी है, फसलों का चक्र गड़बड़ा गया है, नेचर पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार आर्कटिक सागर की बर्फ सन् 1990 के मुकाबले सात गुना तेजी से पिघल रही है, वहाँ के 70 जीवों का अस्तित्व संकट में है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम सम्पूर्ण मानव जाति बगैर किसी राजनैतिक, धार्मिक व आर्थिक भेदभाव के इस धरती पर आए इस पर्यावरणीय महासंकट को, जो मानव सहित समस्त जैवमण्डल के अस्तित्व पर बन पड़ी है, को मिल-जुलकर बचाने का अपना ईमानदार और गंभीरतापूर्वक कोशिश और प्रयत्न करें।
सभी की सुख की कामना के लिए कहा गया भी गया है-
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणिपश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेद्। ‘
(सभी सुखी रहें, सभी रोग मुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बने, किसी को भी दुःख न हो)
— निर्मल कुमार शर्मा