ग़ज़ल
वो जो कहते थे कि तुम ना मिले तो ज़हर मुझे पीना होगा
खुश हैं वो कहीं और अब तो उनके बगैर ही जीना होगा
चोट नहीं लगी है दिल पे चीरा लग गया है मेरे दोस्त
सह लूंगा दर्द मगर इस दिल को उनको ही सीना होगा
इश्क़ बहुत था उनको हमसे लेकिन मजबूर थे वो
लगता है शादियों के संग ही बेवफ़ाई का महीना होगा
संभाल कर रखा था हमने उन्हें रूह की गहराइयों में
ज़रा सोचो किस अदा से खुद को उन्होंने हमसे छीना होगा
अश्क़ आंखों से टपक पड़े गालों पर कल जो देखा उनको
और उन्होंने समझा मेरे माथे से लुढ़का पसीना होगा
— आलोक कौशिक