निष्कर्ष
”ममा-पापा को अपनी मर्जी से खाने-पीने की कोई मनाही नहीं है, जो कहते हैं हम तुरंत ला देते हैं, पर पता नहीं क्यों वे सहज नहीं दिखाई देते!” बहू-बेटा परेशान-से लग रहे थे.
”जापान में अधिकतर लोग 100 से भी अधिक साल तक जीते हैं और अंत तक प्रसन्न और चुस्त-दुरुस्त रहते हैं.” एक वीडियो देखकर बेटे की उत्सुकता बढ़ गई थी.
”वहां बुजुर्गों को पूरा मान-सम्मान दिया जाता है, वे लोग अनुभवों का ख़ज़ाना होते हैं, इसलिए कुछ देर उनके पास बैठकर उनसे अनुभव भी हासिल किए जाते हैं और बच्चे उनके साथ अपना कुछ समय बिताते हैं, तो वे आत्म-संतुष्टि से तृप्त हो जाते हैं.” उसने अपनी पत्नि को भी बुलाकर दिखाया.
”हम ममा-पापा के साथ कभी बैठने के लिए समय नहीं निकाल पाते, शायद इसी कारण वे मायूस-से रहते हैं. हम रोज उनके साथ कुछ देर बैठकर बात करने के लिए समय निकाल सकें, तो उनको भी खुलकर अपने मन की बात करने का अवसर मिल जाएगा और उनकी छोटी-मोटी समस्याएं भी हल हो सकेंगी.” पत्नि ने निष्कर्ष निकाला.
बुजुर्गों को मान-सम्मान का उपहार मिल गया था.
विदेशों में अक्सर लोग खुद को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं. हमारे पड़ोस में 92 साल की कीरू आंटी रहती हैं, वे रोज सुबह लगभग एक घंटे के लिए अपनी व्हील चेयर पर आकर सड़क पर बैठती हैं और खुली हवा का सेवन करने के साथ सभी आने-जाने वालों का अभिवादन करके खुश रहती हैं.