गीत – हृदय चेतना लायें
नीर झील का हुआ विषैला, किसको अपनी व्यथा सुनाएं।।
यहाँ विदेशी सुंदर पक्षी, आकर सबका मन बहलायें।
मीठा खारा नीर झील का, खग वृन्दों को खूब रिझायें ।।
मरें परिन्दें यहाँ हजारों, “जल ही जीवन” को झुठलायें ।
अखबारों में पढ़ीं वेदना, नयन अश्क सबने छलकायें ।।
राजनीति के गलियारों में, क्यों सब व्यर्थ विवाद बढ़ाये ।
नीर झील का हुआ विषैला, – – – – –
गंगा यमुना तक के जल को, मलिन किया है मानव ने ही।
दूषित जल से कोई कैसे, प्यास बुझा सकता है देही ।।
जीवन का पर्याय यहाँ पर, माना जग ने सदा नीर को,
शुद्ध रहे जल स्रोत सभी जब, करें सुरक्षित नदी तीर को।।
जल संरक्षण हो जीवों हित, सब में हृदय चेतना लायें ।
नीर झील का हुआ विषैला, – – – – –
ताल-तलैया सूखे सारे, खूब किया भूजल का दोहन ।
चिड़ा रहें नल-कूप गाँव मे,पनघट खाली हैं हे मोहन।।
छेड़-छाड़ भी पनिहारिन से, कहाँ करेगा कृष्ण-कन्हैया
वृक्ष उगाकर जल संचय से, फिर से भरना ताल-तलैया ।।
क्यों आँखों को मूंदें मानव, आओ कल को आज बचाये ।
नीर झील का हुआ विषैला – – – – –
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला