ग़ज़ल
मत तोड़ दिलों के बंधन को फिर जाने कब यह प्रीत मिले
जाने कितने युग की दुआ से फिर ये मन का मन मीत मिले
तू छीन के ले जा सब कुछ मेरा खुद को मुझ में रह जाने दे
क्या हासिल तुमको होगा गर दिल तोड़ के मेरा जीत मिले
आ फिर से पास वही बैठे जिस जगह बिछड़ कर आए थे
के तेरी मेरी ठहरी सांसो को मुमकिन है फिर संगीत मिले
कोमल मन के आंगन में एक चिंगारी सी दहक उठी है
क्या इश्क इसे ही कहते हैं क्यों दिल कहता तू नजदीक मिले
यहां दिल के फैसले दुनिया वाले दिल से नहीं समझते हैं
सुनो दिलवालों की रीत बोलो कब दुनिया की रीत मिले
तुम मुझको मुझमें हद तक ढूंढो लेकिन याद रहे जानिब
फिर ना मुकर जाना गर दिलमें तेरे दिल की दहलीज मिले
— पावनी जानिब