बोल
वेद कहते हैं-
‘सत्यम ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम’
सच बोलो, मीठा बोलो, कड़वा सत्य कदापि मत बोलो,
इससे अच्छा है मौन रहो.
बुजुर्गों का कहना है-
पहले तोलो, फिर बोलो,
तोलकर बोलने में कुछ समय लगेगा,
उतना समय मौन तो रहोगे!
साथ ही अच्छा-बुरा सोच भी सकोगे.
कबीर जी ने लिखा है-
”बोली एक अमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि॥
गांधीजी के एक बंदर का कहना है-
बुरा मत बोलो,
बुरा बोलने से आपके व्यक्तित्व पर ही उंगली उठ सकती है.
शब्दों का वजन तो बोलने वाले के,
भाव पर आधारित है,
एक शब्द मंत्र हो जाता है,
एक शब्द गाली कहलाता है,
वाणी ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिचय कराती है.
इसलिए
पहले तोलो,
फिर बोलो,
बिना मतलब के मत बोलो.
बोलने से पहले लफ़्ज़ इंसान के गुलाम होते हैं,
लेकिन बोलने के बाद इंसान अपने लफ़्ज़ों का गुलाम हो जाता है.
दोनों कविताएँ बोल और बजुर्गों की दुआएं बहुत पसंद आईं लेकिन बात तो अपनी अपनी समझ पे है .हर एक को इस बात का पता तो है लेकिन हर कोई अपने सुभाव के मुताबक ही बोलता है . कुछ लोग अहंकारी तबीअत के माल्क होते हैं और उल जलूल बातें करने से न झिज्कते हैं न डरते हैं .कुछ लोग तो ऐसे होते हैं कि मुंह से बात निकालते समय बात को सोने की तकड़ी में सोना तोलने की तरह बोलते हैं . बजुर्गों को जिंदगी भर का तजुर्बा होता है और वोह जो भी बोलते हैं, झूठ कभी नहीं बोलते .इसी लिए जिंदगी में हमें दादा दादी कभी कभी याद आते रहते हैं .
प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपकी एकदम सटीक प्रतिक्रिया ने सब कुछ कह दिया है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.