सामाजिक

रिश्ते

अमूमन इस संसार में कई प्रकार के रिश्तों का प्रचलन आदिकाल से ही रहा है । ये रिश्ते कई प्रकार के होते हैं अथवा कई नामों से जाने जाते है । उदाहरणस्वरुप – सगे, मुंहबोले इत्यादी । कुल मिलाकर इन्हें हम दो भागों में बांट सकते हैं – पहला , खून का रिश्ता और दूसरा दिल का रिश्ता । खून के रिश्ते वे रिश्ते हैं जो इंसान के दुनिया में आने के साथ ही बन जाते हैं और ताउम्र चलते हैं चाहे आपसी हालात कैसे भी हों । कई बार तो ये खून के रिश्ते सिर्फ नाम के ही हुआ करते हैं । आज के आधुनिक एवं बदलते परिवेश में तो स्थिति और भी चिंताजनक है । आज के दौर में बाप-बेटा, पति-पत्नी, भाई-भाई, भाई-बहन के रिश्तों में ऐसी स्थितियां बहुतायत में देखने को मिलती हैं जो खून के रिश्ते होने के बावजूद केवल नाम के रह गए हैं । ऐसी परिस्थितियों का वास्तविक जिम्मेदार किसे माना जाए? ऐसी स्थितियों का वास्तविक जिम्मेदार है – लोभ, मोह और स्वार्थ । आइए अब बात करते हैं दिल के रिश्तों पर । दिल के रिश्ते खून के रिश्तों के उलट होते हैं । एक ओर जहाँ खून के रिश्ते इंसान के जन्म से मृत्यु पर्यंत ईच्छा अथवा अनिच्छा से बने रहते हैं । भले ही वे रिश्ते इंसान त्याग दे परंतु उसका नाम हमेशा इंसान के साथ जुडा़ ही रहता है वहीं दूसरी ओर दिल के रिश्ते इंसान के पास जन्म से नहीं होते बल्कि उन्हें वह अपने होश संभालने के बाद अपनी बुद्धि एवं विवेक से बनाता है जैसे – दोस्त, प्रेमी या प्रेमिका । इस जीवन में कई मौकों पर दिल के रिश्ते को खून के रिश्तों से ज्यादा प्रभावी बताया गया है । कुछ लोग कहते हैं कि दिल का रिश्ता खून के रिश्तों से कहीं ज्यादा बड़ा होता है वहीं दूसरी ओर लोग यह भी कहते हैं कि , खून खून को पुकार ही अथवा पहचान ही लेता है । मेरा संशय अभी भी बरकरार है कि , दोनों में से बड़ा एवं प्रभावी रिश्ता कौन सा है । इस संशय की स्थिति से निकलने के लिए मैंने रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली कुछ घटनाओं पर मंथन किया तब मैंने पाया कि कहीं कोई अपने दोस्त के लिए गैरों से भिड़ जाता है तो कभी कोई अपनी प्रेमिका के लिए अपनों से । कहीं कोई बेटा अपने मां-बाप के लिए पत्नी से लड़ रहा है तो कहीं पत्नी के लिए मां-बाप से , और तो और कहीं भाई-भाई आपस में ही लड़ रहे हैं ।

इन तमाम बिंदुओं के सिंहावलोकन के पश्चात मुझे यह लगा कि , दुनिया में भले ही दिल के रिश्ते को हमेशा खून के रिश्ते से ऊपर बताया जाता या माना जाता है पर हमेशा दिल के रिश्तों के बीच विकट परिस्थितियां खून के रिश्तों ने ही पैदा किया है , अर्थात विकट परिस्थितियों में खून के रिश्ते ही भारी पडे़ हैं । ये कलयुग है । यहां के लोगों को बस एक ही रिश्ते में रुचि है और वो है स्वार्थसिद्धि का रिश्ता । हमेशा उन्हीं रिश्तों की कद्र हुई है जिन्होंने स्वार्थसिद्धि में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं हैं । इसलिए रिश्ते बनाने से पहले अवश्य विचार करें वर्ना ताउम्र एक अनचाहे अफसोस को ढो़ना पड़ सकता है । अर्थात आज के इस अर्थ युग में न दिल का रिश्ता बड़ा है न खून का । यहाँ तो बस स्वार्थ का रिश्ता सबसे बड़ा है ।

— विक्रम कुमार

विक्रम कुमार

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