लघुकथा

फूंक

”जीवन को केवल दो ही शब्द नष्ट करते हैं,
अहम और वहम.”

जैसे ही समीक्षा के पास यह संदेश आया, उसे याद आया कि ऐसा ही एक संदेश पहले भी आया था. वह इसकी समीक्षा करने में व्यस्त हो गई थी, तभी बच्चों के लिए नए लंच बॉक्स लाई उसकी पुत्रवधू शिखा ने उसे दिखाकर पूछा था- ”ममी जी, देखिए, लंच बॉक्स कैसे हैं?”

देखने में सुंदर लंच बॉक्स को उलटते-पलटते समीक्षा ने शीशे के लंच बॉक्स को खोलना चाहा, तो खुल नहीं रहा था. तभी उसकी नजर प्लास्टिक के लंच बॉक्स कवर पर लगे एक छोटे-से Steam release vent पर पड़ी. उत्सुकतावश उसने उस vent को खोला. टक की आवाज करता हुआ लंच बॉक्स खुल गया था.

”लो इसके अहम की फूंक निकल गई.” समीक्षा ने कहा था.

लंच बॉक्स बंद करते समय फिर उस vent को खोलते ही टक की आवाज करता हुआ लंच बॉक्स बंद हो गया.

”लो इसके वहम की फूंक भी निकल गई.” समीक्षा ने कहा था.

”बस अहम और वहम की फूंक निकल जाए, तो जीवन सार्थक हो जाता है.” समीक्षा ने समीक्षा की थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “फूंक

  • लीला तिवानी

    सारा झगड़ा ही फूंक का है, चाहे वह अहम की हो या वहम की, क्रोध की हो या ईर्ष्या की, रूप के घमंड की हो या और धन के आधिक्य की, फूंक निकल जाए तो बहार-ही-बहार है, सुरूर-ही-सुरूर है.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      बस यह बात किसी की समझ में आ जाए तो हर तरफ शांति , मधुरता और अच्छाई का विकास होगा लीला बहन . जिस दिन फूंक निकल गई, अच्छा या बुरा इतहास उस के दोस्तों रिश्तेदारों और सगे संबंदी लोगों में याद किया जाएगा . इस से मुझे मेरे ताऊ की याद आ गई जो एक नम्बर का शराबी कबाबी था . मेरे पिता जी और ताऊ के दर्मिआन कभी भी प्यार नाम की कोई चीज़ नहीं थी . जिस दिन मेरे पिता जी अचानक एक हादसे के कारण शरीर छोड़ गए तो ताऊ साहब बहुत खुश थे और शराब के नशे में बोल रहे थे कि अच्छा हुआ इस को मौत आ गई . इस के चौथे दिन ताऊ को हार्ट अटैक हुआ और वोह भी दुनिया छोड़ गए . आज तक इस बात को मैं भूला नहीं, मन यह ही चाहता है कि कुछ मिनट के लिए ताऊ मेरे सामने आ जाए तो उन से पूछूं कि रहे तो आप भी नहीं, फिर क्यों अपने ही भाई की मौत पर खुशीआं मना रहे थे .
                                   

      • लीला तिवानी

        प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपकी एकदम सटीक प्रतिक्रिया ने सब कुछ कह दिया है. आदमी जानता सब है, कि करना निश्चित नहीं है, मरना निश्चित है, धन, यौवन, रूप आदि सब ढल जाने हैं, तो घमंड किस बात का किया जाए, फिर भी हम क्रोध-ईर्ष्या-घमंड का दामन पकड़े रहते हैं. ताऊजी की दुःखद बात कभी भी भूलने वाली नहीं है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

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