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#ये_देश अब्दुल हमीद का है,

#ये_देश
अब्दुल हमीद का है, अब्दुल कलाम का है, रसखान, वीर सावरकर, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह का है। ये देश हमारा है, हम सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों का है पर मट्ठीभर वोटप्रिय नेता इसे हिन्दू-मुस्लिम का देश घोषित कर रहे हैं। जानते है क्यों??????
क्योंकि हम अन्धे होकर उनका अनुशरण कर रहे है। वो अच्छे से जानते हैं कि जिस दिन हम जात-धर्म भूलकर देश का विकास मांगेंगें तो उनकी दुकानें बन्द हो जायेंगी। अपनी दुकाने चलाने के लिए वो कभी हमें एक नही होने देना चाहते।

बताइये आज तक दंगों की हिंसा में किसी नेता या उनके बच्चे घायल तक हुए हों। नहीं! घायल कौन होता है आपके और हमारे बच्चे। मरता कौन है आपके और हमारे बच्चे। ज़रा सोचिए…..
मै तो उस भारत को जानता हूँ जहाँ नौदुर्गा और गणेश पूजा में मूर्तियां और उनका श्रंगार का सामान कोई अब्दुल बनाता है या कोई सलीम। ईद में सिवई सबसे ज्यादा तिवारी अंकल की दुकानों में बिकती है। हमारी मार्केट में जितनी रौनक दिवाली या होली में होती है उतनी ही ईद में। फिर क्यों आना नेताओं के बहकावे में???? हम क्यों नही सोचते ये देश हम सबका है। कोई समाज का ठेकेदार कहता है इसे मुस्लिम देश बनायेंगें तो कोई कहता है इसे हिन्दू देश। हमारी सदियों की एकता और अखंडता को किसकी नज़र लग गई???

कोई कानून बना तो उतर गए सड़कों पर क्योंकि हमारे नेता ने कहा ये गलत है। पहले जान तो लो कि आखिर सच क्या है??? हमें दो जून की रोटी कमाने समय नही मिलता पर बसें जला सकते हैं, रेल की पटरियां उखाड़ सकते हैं, पुलिस थाना फूक सकते हैं, इसके लिए पर्याप्त समय है हमारे पास। ये लोग किसकी सम्मपत्ति को नुकसान पहुँचा रहे हैं? हम टैक्सपेर्यस की। सरकार का क्या? कुछ प्रतिशत टैक्स बढा देगी पर भरना किसे है? आपको और हमको।

समझिए! विरोध गलत बात का करते हैं पर ये कौन सा तरीका है विरोध का। कभी निकलिए विरोध के लिए कि रोजगार चाहिए, सुरक्षा चाहिए, सस्ती शिक्षा चाहिए, सस्ती चिकित्सा चाहिए और सबसे महात्वपूर्ण न्याय सस्ता चाहिए पर नही हम तो अन्धों की तरह अपने नेताजी का कहा मानेंगें। वही तो हमारी आँखें हैं। कभी सोचा है कि ऊपरवाले से सभी को अलग-अलग आँखें और दिमाग क्यों दिया? आँख के अन्धे बने रहने के लिए???

और किसी का कुछ नही जाएगा इस प्रकार कि हिंसा में। किसी नग़मा का शौहर मरेगा या किसी सवित्री का पति। किसी शाज़िया का भाईजान घायल होगा या किसी रचना का छोटू। ये नेता फिर से ले आऐंगें कोई दूसरा मुद्दा हमें मूर्ख बनाने के लिए……….बाकी समझदारों से तो दुनिया भरी पड़ी है।……….एक बार पत्थर उठाने से पहले जरूर सोचिए कि ये पत्थर आप पर ही लौटकर लगने वाला है।………सौरभ दीक्षित मानस

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,