नित नई चेतना नव जीवन में आए।
मन में हो संयम विपत्ति में न घबराए।
काम करनें से पहले बीस बार सोचो,
गलती की गुंजाइश कहीं रह न जाए।
पारदर्शिता इतनी हो तुम्हारे काम में,
कोई उँगली उठा कर कह न पाए।
परिश्रम तुम्हारा कसौटी पर उतरे,
यूँ पसीना व्यर्थ कहीं बह न जाए।
हिम्मत से हों पुरे हकीकत के सपनें,
यूँ ही महल रेत का कहीं ढह न जाए।
शिव रिश्ते नित सहज कर रखिए,
खटास इन रिश्तों में कहीं आ न पाए।
— शिव सन्याल