“कुंडलिया”
कुंडलिया
माना दिल से आप ने, जिसको अपना देश।
वही खा गया आप को, धर राक्षस का वेश।।
धर राक्षस का वेश, विशेष कहूँ क्या मितवा।
बँटवारे की रात, सो गए सारे हितवा।।
कह गौतम कविराय, छद्म को किसने जाना।
राजा हुए गुलाम, ध्येय गद्दी को माना।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी