लघुकथा

साॅरी

लता का छः वर्षीय बेटा अपनी छोटी बहन से एक रोटी ज्यादा  खाने की जिद करने लगा इसपर लता आग बबूला हो गई । लता के हरकतों को देखकर उसकी सहेली बोली -” लड़का तो लड़का है यार इस तरह नहीं डांटना चाहिए । एक रोटी ज्यादा हो गयी तो क्या हुआ बेटी को इसकी आदत डालनी चाहिए, सहेली की बातों को सुनकर लता मुस्कुरा पड़ी -” यही तो हमसे गलती हो जाती है सोना, लड़के को छूट देकर उसकी मनमर्जी करने देते हैं और लड़की के पैरों में जंजीर डाल देते हैं  बात सिर्फ एक रोटी की नहीं है एक लड़की की बेबसी, चुप रहने, लोगों की ताने सुनने की है.. अगर लड़की भी अपने हक की जिंदगी जीने लगेगी तब गाड़ी सही पटरी पर चलेगी । लड़के को भी अपनी जिम्मेदारी और सीमाओं का एहसास होना बहुत जरूरी है । जमाना बदल रहा है अब हमें (माँओं को) भी अपनी सोच बदलनी होगी । कब तक बेटी को कमजोर बनाते रहेंगे ….कब तक उनके पँख काटते रहेंगे….

अपनी सहेली की ऐसी बातें सुनकर सोना को अपनी भूल का एहसास हुआ वह अपने बेटी की गलती ना होते हुए भी दो तमाचा जड़कर आई थी। वह सीधे घर की ओर दौड़ी आखिर बेटी को ‘सॉरी’ जो बोलना था।

भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’