गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

गीतिका, मात्रा भार-30, समांत- अल, पदांत- आसी

कुछ चले गए कुछ गले मिले कुछ हुए मित्र मलमासी
कुछ बुझे बुझे से दिखे सखा कुछ बसे शहर चल वासी
कुछ चढ़े मिले जी घोड़े पर जिनकी लगाम है ढ़ीली
कुछ तपा रहे हैं गरम तवे कुछ चबा रहे फल बासी।।

कुछ फुला फुला थक रहे श्वांस कुछ कमर पकड़ के ऐंठे
कुछ घूम रहे हैं मथुरा में कुछ चढ़ा रहे जल काशी।।

कुछ दिए गया में पिंडदान कुछ चारधाम जा अटके
कुछ बिखर गए कुछ विसर गए कुछ हुए निकल सन्यासी।।

कुछ मिले रखड़ते ढोर मतिन कुछ राजनीति के प्यादे
कुछ कूट रहें है घर पत्थर कुछ बहुते कुशल सियासी।।

यह गौतम की मजबूरी है अपनों के लिए तड़फना
सब अपने मद में चूर हुए प्रिय सगा खाँस खल खाँसी।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ