ग़ज़ल
जलूँगा कब तलक तनहा मैं शरारों की तरह,
कभी उतरो मेरे आँगन में सितारों की तरह
मैं एकटक तुझे देखा करूँ, देखा ही करूँ,
चाँदनी रात के पुरनूर नज़ारों की तरह
पास रह के भी मिलना ना हो सका अपना,
बरसों साथ चले हम दो किनारों की तरह
छुपा के रखता मैं दुनिया से तुम्हें पर ये मेरे,
हाथ में है नहीं किस्मत के सितारों की तरह
तेरी यादों से कह कभी तो सोने दें मुझको,
आवाज़ देती हैं शब भर पहरेदारों की तरह
आसरा तेरे प्यार का जो मिल गया होता,
उम्र कटती नहीं अपनी बेसहारों की तरह
— भरत मल्होत्रा