आत्मकथ्य : कैसा रहा साल – 2019 मेरे लिए
निरन्तर चलना ही जिंदगी है, फिर चाहे जाड़ा हो, गर्मी हो, बरसात हो बस चलना ही है और मैं निरन्तर चल रहा हूँ | परन्तु चलने के बाद भी ऐसा लग रहा है कि जिंदगी ठहर सी गई है | न जाने क्यों लगता है कि अब बाकी कुछ करने को बचा ही नहीं | कितना कुछ किया, तमाम हाथ-पैर मारे परन्तु अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में कामयाब नहीं हो सका | मेरे तमाम मित्र सांठ-गांठ करते हुए काफी आगे निकल गये | पर अपने अन्दर छल-कपट वाले गैर कानूनी कार्य करने की हिम्मत हुई नहीं और आगे होगी भी नहीं | फिर चाहे सारा जीवन कितने ही अभावों में गुजर जाये | कवि निराला की उंगली पकड़ली है तो मरते दम तक छोड़ने वाला नहीं हूँ | भूखा, नंगा रहना मंजूर है, अपने ईमान का सौदा कतई मंजूर नहीं | खैर जिंदगी तो हंसते – रोते कट ही जायेगी | अब मैं बात करता हूँ अपने गुजरे वर्ष 2019 की –
जनवरी :- यह माह सुख-दु:ख भरा रहा | इसी में मित्र रौनक सोलंकी के एक कार्यक्रम में सामिल हुआ और पहलीबार एक फाइव स्टार होटल रेडीसन ब्लू में कदम रखा | माह का अन्त पशुओं की देखभाल में हुआ |
फरवरी :- फरवरी में तो एक साजिश का शिकार होते – होते बचा | दरअसल किसी दूसरे ने फ्रॉड किया और शक मुझ पर हुआ, क्योंकि मेरी डाक बहुत आती है, जो गाँव वालों की समझ से परे है | आठ फरवरी को आजमगढ़ की यात्रा पर निकल गया | आजमगढ की मेरी यह प्रथम यात्रा थी | वहाँ आदरणीय रामसूरत बिंद जी अपने विद्यालय – एकलव्य इंटर कॉलेज का रजत जयंती कार्यक्रम मनाने वाले थे | मैं मुख्य अतिथि आमंत्रित था | कार्यक्रम में सहभागी होकर बहुत आनन्द आया | लौटते समय प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में भी कुछ समय के लिए चला गया | वहीं पर घर से आपातकालीन फोन आया और मजबूरन वापिस घर लौटना पड़ा | माह के अन्त में मित्रों के सहयोग से कैनन 77 डी कैमरा खरीद लिया, ताकि कुछ धंधा पानी शुरू हो जाये | वहीं इसी माह में 25 तारीख को मित्र अवधेश कुमार निषाद के साथ गाँव के एक मित्र प्रीतम निषाद के साथ पहलीबार प्रेम की मूरत ताजमहल का दीदार किया और जीभर कर किया क्योंकि मित्र अवधेश कुमार निषाद संविदा पर कर्मचारी था ताजमहल के देखरेख विभाग में |
मार्च :- इस माह में श्री डॉ. नरेश कुमार सिहाग एडवोकेट जी द्वारा आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में भिवानी, हरियाणा अपने पोस्टमैन साहब सिंह के साथ सहभागी हुआ | भिवानी की यह मेरी प्रथम यात्रा रही और इस यात्रा में काफी कष्टों का सामना करना पड़ा | किसी दूसरे ने ट्रैन में चैन पुलिंग की और हम फस गये |
अप्रैल, मई, जून :- ये तीनों महीने कुछ खास नहीं रहे | थोड़ी बहुत सरस्वती साधना की… | अप्रैल महीने में खास साले की शादी में सामिल हुआ तो सारी रात चचेरे भाई के साथ भूखे गुजारनी पड़ी |
जुलाई :- इस माह में आगरा निवासी रौनक सोलंकी के माध्यम से एक ग्लेमरस पत्रिका निकालने पर बात चली | मैंने सामग्री लिख कर दे भी दी पर पत्रिका प्रकाशित न हो सकी | माह के अन्त में पिताश्री को हृदय की बीमारी का सामना करना पड़ा |
अगस्त, सितम्बर :- अगस्त पारिवारिक उलझनों में निकल गया | सितम्बर माह में विश्वशांति मानव सेवा समिति (एन. जी. ओ.) के हैड जय किशन सिंह एकलव्य के सौजन्य से हिंदी दिवस पर एक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया | इसकी सलाह मैंने ही एकलव्य जी को दी | इसी कार्यक्रम में मेरी तीसरी किताब काव्य दीप का विमोचन भी सम्पन्न हुआ | कार्यक्रम पूर्णतः सफल रहा |
अक्टूबर :- इस माह में गाँव सिद्ध का पुरा में फिल्म व्हाइट टाइगर की शूटिंग देखी | बहुत बड़े स्तर की शूटिंग थी | एक सज्जन से परिचय निकालकर जूनियर आर्टिस्टों वाला खाना खाकर निकल आया | क्योंकि रोल मिलने की जुगाड़ बन नहीं पायी |
नवम्बर :- इस महीने में मुझे बहुत बड़े आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा | मेरा घरेलू वजट बुरी तरह से प्रभावित हुआ | एक-एक पैसे का मोहताज हो गया | इसी कारण डिप्रेशन में चला गया |
दिसम्बर :- डिप्रेशन से थोडा बहुत बाहर निकला ही था कि फिर गृहक्लेश का सामना करना पड़ा | और कई दिनों इधर-उधर मित्रों के यहाँ समय गुजारना पड़ा | हालांकि हालात तो अभी भी खराब हैं, परन्तु जीवन की गाड़ी किसी तरह खींच रहा हूँ | इसी माह में कोलकाता निवासी सदीनामा के सम्पादक महोदय जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |
कुलमिलाकर यह वर्ष 2019 कुछ खास नहीं रहा मेरे लिए | हालांकि सोशल मीडिया पर पूरी साल सक्रिय रहा | साहित्य सृजन भी छुट-पुट चलता रहा | अभिनय के क्षेत्र में कुछ खास नहीं कर पाया | चार छ: जगह कैमरा चलाया परन्तु आर्थिक दृष्टि से निराशा ही हाथ लगी | आभावों भरा यह साल अटकते भटकते ही गुजर गया… देखता हूँ आने वाला 2020 क्या – क्या गुल खिलायेगा और पता नहीं 2020 पूरा देखूंगा भी कि नहीं… लेकिन जंग जारी रहेगी | जीना-मरना उस ऊपर वाले के हाथों में है |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा