कुण्डलिया – देश हमारा धर्म है!
भौंका कुत्ता एक जब , हुआ गली में शोर।
भौं भौं भौं मचने लगी, हुई भयावह भोर।।
हुई भयावह भोर, सभी क्यों भौंक रहे हैं।
अज्ञानी , राही की – राहें रोक रहे हैं।।
‘शुभम’ न तुलसी – कुंज, उग रहे कूकरमुत्ता।
भौंके कुत्ते खूब, प्रथम जब भौंका कुत्ता।।1।
चाटा जिसने रक्त ही, उसे रक्त की चाह।
यही धर्म की शान है , होकर बेपरवाह??
होकर बेपरवाह, हृदय से दया बिसारी।
मानवता का त्याग, भले हो अपनी ख्वारी।।
‘शुभम’ सुलगती आग , दनुज ने मानव काटा !
लगी लहू की चाट, साँप ने लोहू चाटा।।2।
देश – संपदा दहन कर, जो रहता इस देश।
नहीं नागरिक देश का, जन्मा ज्यों पशु – वेश।।
जन्मा ज्यों पशु – वेश , न मानव ही कहलाता।
रक्त – पिपासा शेष , हिंस्र पशु ही बन जाता।।
‘शुभम’ देह नर रूप, आम जन की वह विपदा।
कीड़ा क्लीव कपूत , न जाने देश – संपदा ।।3।
पले सपोले डस रहे , इनसे रहो सचेत।
खाते – पीते देश का, नहीं देश से हेत।।
नहीं देश से हेत, छेद पात्रों में करते।
खाते हैं जिस पात्र, दूसरों के हित मरते।।
‘शुभम ‘ ले रहे स्वाद, सदा रस में विष घोले।
त्याग मनुज का रूप, आस्ती पले सपोले।।4।
देश हमारा धर्म है , देश हमारा कर्म।
अन्न दूध फल देश के, देश हमारा मर्म।।
देश हमारा मर्म, यही अस्तित्व हमारा।
पोषक सदा सुनीति, विमल सुरसरिता धारा।
‘शुभम ‘ सुदृढ़ क़ानून, है नहीं पक्ष लवलेश।
राम कृष्ण की भूमि, यह प्यारा भारत देश।।5।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’