ग़ज़ल
कलम है, कोई तलवार नहीं है।
तूलिका है, कोई हथियार नहीं है।।
अंदाज़ नहीं है, तुझे असर इसका,
शांत रहती है, इज़हार नहीं है।
जो कह दिया है , अमर है वाणी,
रद्दी में बिके , वह अख़बार नहीं है।
अदीब की आवाज रोक सके कोई,
संगेमरमर की वह दीवार नहीं है।
अपनी ही पतवार से खेता किश्ती,
‘शुभम’की राह में वह आसार नहीं है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’