नई विंडो के अन्वेषक गुरमैल भाई: कुलवंत कौर के जन्मदिन की बधाई
आज 25 दिसंबर है. आप कहेंगे, कि 25 दिसंबर तो हर साल आता है. जी हां, 25 दिसंबर तो हर साल आता है, 25 दिसंबर यानी क्रिसमस, यानी बड़ा दिन, 25 दिसंबर यानी भारत के दसवें प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन, 25 दिसंबर यानी गुरमैल भाई की अर्धांगिनी कुलवंत कौर जी का जन्मदिन भी हर साल आता है. आज हम कुलवंत कौर जी को जन्मदिन की कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं देते हुए नई विंडो खोलते हैं. नई विंडो कुलवंत कौर जी की पहचान तो है ही, गुरमैल भाई की ईजाद भी है.
यह नई विंडो कम्प्यूटर की कोई नई विंडो नहीं है, यह कुलवंत कौर जी और गुरमैल भाई की मेहनत की पहचान है. हम आपको पहले भी अनेक बार बता चुके हैं, कि गुरमैल भाई आज जो कुछ भी हैं, अपने साहस-परिश्रम और कुलवंत कौर जी के साहस-परिश्रम के कारण ही हैं. पहले कुछ बात कुलवंत कौर जी के साहस-परिश्रम की. जिसके कारण गुरमैल भाई की पहचान की नई विंडो खुल पाई है. कुलवंत कौर जी का मानना है-
”उद्यमता ही एक मात्र ऐसा साधन है जो हमारे जीवन में उपस्थित समस्त प्रतिकूल परिस्थितियों के घोर कुहांसे को मिटाकर सुख के सूर्य का उदय कर सकती है!”
अपनी उद्यमता से ही कुलवंत जी ने समस्त प्रतिकूल परिस्थितियों के घोर कुहांसे को मिटाकर सुख के सूर्य का उदय कर दिखाया है साहस-परिश्रम की अनुपम मिसाल कुलवंत कौर जी ने हमेशा से बड़ी शिद्दत से गुरमैल भाई का साथ निभाया है. परम प्रभु की अपरम्पार कृपा से कुलवंत कौर जी आज भी अपनी फिटनेस का ध्यान रखते हुए घर के सब काम खुद करती हैं, पोतों को संभालती हैं और काउंसिल की तरफ से अनेक पुरस्कार जीतती हैं.
गुरमैल भाई के साहस और हिम्मत से भी आप सब भलीभांति वाकिफ़ हैं. अभी हाल ही में ब्लॉग ‘फिर सदाबहार काव्यालय- 51’ में एक छोटी कविता
‘और मुझे जीना है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!’
के जरिए गुरमैल भाई ने अपनी पूरी आत्मकथा बयान कर दी, जो उनके असीम साहस का प्रतीक हैं. गुरमैल भाई के दुर्घटनाग्रस्त होकर लगभग डिसैबिल होते हुए भी न कुलवंत कौर जी ने साहस का दामन छोड़ा, न गुरमैल भाई जी ने. गुरमैल भाई जी खुद अपना संबल बन गए, तो कुलवंत कौर जी उनके संबल का सुदृढ़ संबल बन गईं. धीरे-धीरे उपलब्धियों की नई विंडोज़ खुलती चली गईं. ये उपलब्धियां दोनों की सांझी उपलब्धियां हैं. अब हम बात करते हैं नई विंडो की.
गुरमैल भाई ने हमारे ब्लॉग ‘पहचान (लघुकथा)’ पर जो प्रतिक्रिया लिखी थी, वह इस प्रकार है-
”बहुत अच्छी लघुकथा लीला बहन. अगर गले में कोई तब्दीली न आये तो इस स्पीच थैरेपी से बहुत फायदा हो सकता है. जिस ढंग से यह स्पीच थैरेपी होती है, मैं इसको बहुत अच्छी तरह जानता हूँ. मैंने भी लैसन लिए थे, क्योंकि मैं बोल नहीं पाता था. रोग के कारण मेरे गले में ग्लैंड बढ़ जाने की वजह से इतनी कामयाबी नहीं हो सकी. फिर भी घर के सदस्यों को धीरे-धीरे समझा देता हूँ और यह इस स्पीच थैरेपी की वजह से ही है.” गुरमेल भमरा
इस पर हमने लिखा था-
”प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. रोज एक घंटा ”जिंदगी इक सफर है सुहाना” आपके जीवन का सफर सुहाना हो गया, यह हमें अच्छी तरह याद है. आप ऐसे ही रियाज करते रहिए, चमत्कार हो-न-हो, पर आपने जितनी सफलता प्राप्त की है, उसमें इज़ाफ़ा होता रहेगा. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.”
प्रतिक्रिया के शहनशाह गुरमैल भाई जी ने लिखा-
”हा हा, लीला बहन, सुहाना सफ़र याद हो आया. आज का श्रवणकुमार
क्या पढ़ा, नई विंडो ही खुल गई जो सपने में भी कभी सोचा नहीं था. मैं और साहित्य! इस में कोई मैच ही नहीं था. कैसे यह सब हो गया, मेरी कहानी के २०१ एपिसोड कम्प्लीट हो गए और आप ने ई बुक्स बनाकर तो मेरा एक सपना साकार कर दिया. फिर मज़े की बात यह कि हिंदी मुझे इतनी आती ही नहीं थी, क्योंकि मेरे समय में हिंदी हमको एक विदेशी भाषा-सी लगती थी. एक बात से मैं भाग्यवान रहा हूँ कि मुझे अच्छे लोगों का साथ बहुत मिला है. इधर आप ने मुझे उत्साहित किया, इधर इंग्लैंड में एक सज्जन ऐसे मिले, कि उन्होंने मुझे पंजाबी में कुछ लिखने को प्रेरित किया, क्योंकि वे यहाँ की एक पंजाबी पत्रिका के सीनियर ऐडवाइजर हैं. मैंने अपनी सेहत के बारे में बताया तो वे कहने लगे कि हफ्ते में एक आर्टिकल तो देना है, यह कौन सी बड़ी बात है! खैर, पहले कुछ महीने कहानियां भेजीं और फिर सोचा, क्यों न फिर से अपनी कहानी पंजाबी में लिखूं क्योंकि पंजाबी मेरी मातृभाषा होने के कारण जो हिंदी में लिख नहीं सका, वह खुलकर लिखूं. कहानी शुरू क्या की, लोगों के मैसेज आने शुरू हो गए और अब ११६ एपिसोड हो गए हैं और रेग्यूलर मनजीत वीकली पढ़ने वाले इस कहानी के hooked हो गए हैं. जहाँ भी कुलवंत जाती है वे कहानी की बातें करके हंसते हैं और मुझे इस में बहुत ख़ुशी मिलती है. मुझे जीने का सहारा मिल गया है. यह कहानी जो पंजाबी की पत्रिका में हर हफ्ते प्रकाशित होती है, मैंने जून २०१७ में शुरू की थी और मुझे लगता है, जब यह कम्प्लीट होगी ३०० से ज्यादा एपिसोड हो जायेंगे क्योंकि जो हिंदी में लिखी थी, उस के हर एपिसोड के दो एपिसोड बनाता हूँ. एक तो पत्रिका में जगह कम मिलती है, दूसरे जो बातें हिंदी में लिख नहीं सका, अब लिख रहा हूँ. सारे हफ्ते में एक एपिसोड ही लिखना होता है, जो आसानी से लिख लेता हूँ. कुलवंत कह देती है कि लीला बहन ने दूध को जाग लगाया और दही बन गया है. बात सही है, आप के ब्लॉग पर दस्तक न देता तो आज भी मैं जीरो ही होता. गुरमेल भमरा”
प्रिय गुरमैल भाई जी, जिसको हीरो बनना होता है, वह किसी भी तरह हीरो बन जाता है और जो जीरो ही रहना चाहता है, वह जीरो से आगे बढ़ ही नहीं पाता. आप अपने साहस, उत्साह, लगन और परिश्रम के साथ अपनी प्रतिभा से हीरो बन पाए और अपने लिए नई विंडोज़ खोल पाए. कितने ब्लॉग्स, कितनी ई.बुक्स, कितने पुरस्कार आपके नाम हैं, कोई गिनती ही नहीं है.
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपके लिए लिखने को बहुत कुछ है, पर आज बस इतना ही. शेष हमारे और हमारे पाठक-कामेंटेटर्स द्वारा कामेंट्स में. चलते-चलते एक बार फिर आपको कुलवंत कौर जी के जन्मदिन की कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं. आप लोग स्वस्थ रहते हुए ऐसे ही साहस से सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाएं, यही हमारी मनोकामना है.
एक बात और, हम आपको यह बताते चलें, कि गुरमैल भाई की नई विंडो आज भी खुली हुई है. आप ‘एड्स रोग से राहत (लघुकथा)’ के कामेंट्स देखिए, गुरमैल भाई और हमारी जो गुफ़्तगू हुई है, उससे ही आप समझ जाएंगे कि आज भी गुरमैल भाई नई-नई चीजें सीखने-जानने में कितनी रुचि रखते हैं. यह सब उनके साहस और परिश्रम का कमाल है, नई विंडो का कमाल है.
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने अपने लिए एक नई विंडो नहीं, अनेक नई विंडोज खोल ली हैं, यह हमें आज पता चला. अपना ब्लॉग तक आपकी पहुंच नहीं है, फिर भी आप अपना ब्लॉग से बराबर जुड़े हुए हैं, ‘जय विजय’ में भी आप धूम मचा रहे हैं, ‘नया लेखन नया दस्तखत’ में आप प्रतिक्रियाओं के माध्यम से संपर्क बनाए हुए हैं, मनजीत वीकली ने तो आपको पंजाबी समाज से जोड़ ही रखा है और ‘सार्थक साहित्य मंच’ में आपने आज अपनी आत्मकथा का 201वां एपीसोड प्रकाशित कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. ऐसे ही मस्त रहिए, व्यस्त रहिए, स्वस्थ रहिए. हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.
(हमारा ब्लॉग आज का श्रवणकुमार )
March 12, 2014, 10:04 PM IST लीला तिवानी in रसलीला | साहित्य
गुलगस्ते का हर फूल कहता है,
कुलवंत जी जन्मदिन मुबारक हो
फूल की हर पखुड़ी कहती है,
कुलवंत जी जन्मदिन मुबारक हो
हर पखुड़ी की खुशबू कहती है,
कुलवंत जी जन्मदिन मुबारक हो
खुशबू का हर झोंका कहता है,
कुलवंत जी जन्मदिन मुबारक हो
जन्मदिन मुबारक हो,
जन्मदिन मुबारक हो,
जन्मदिन मुबारक हो.
प्रिय गुरमैल भाई जी, ब्लॉग आज का श्रवणकुमार हमारे-आपके लिए मील का पत्थर साबित हुआ. यह ब्लॉग 12 मार्च, 2014 को आया और 17 मार्च, 2014 को आप पर पहला ब्लॉग आया ‘गुरमैल गौरव गाथा’. उसके बाद तो आप बड़े जोशो-खरोश से अपनी गाथा बताते रहे और आप पर ब्लॉग्स की झड़ी आ गई थी. इसलिए हम 17 मार्च को भी विशेष दिवस मनाते हैं. तब से अब तक आप बराबर हमारे साथ जुड़े हुए हैं. चलते एक बार फिर आपको कुलवंत कौर जी के जन्मदिन की कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं.
सच में लीला बहन , आज का श्रवण नहीं दीखता तो आप से सम्पर्क भी न होता . कभी कभी मैं सोचता हूँ कि यह कैसे हो गिया क्योंकि कभी कुछ लिखा ही नहीं था.अब याद आती है कि मेरी आतम कथा के दो एपिसोड हर हफ्ते लिखता था वोह भी बहुत लंबे लंबे . सिहत ठीक नहीं थी और रात के गिआरह वजे तक बैठा लिखता रहता था, कुलवंत हर रोज़ बोलती कि इतनी देर तक न बैठूं . मेरी आँखों में दर्द होती थी लेकिन लिखने से रह नहीं होता था . एक बात और भी आप ने की कि आप ने विजय सिंघल जी की युवा सुघोष में पोस्ट करने को परेरा और विजय भाई भी बराबर मेरी कहानी पर अपने कॉमेंट लिखते रहे .आज इस कहानी को साथिक साहित्य मंच पर पोस्ट करते छै महीने हो गए हैं .इस के पहले अनुपम मंच पर भी पोस्ट कर चुक्का हूँ, यह राजकुमार भाई का आग्रह था .आप सब का तहदिल से धन्यवाद करना चाहता हूँ .