सामाजिक

नव वर्ष,नव संकल्प

नव वर्ष को एक उत्सव के रूप में मनाने का इतिहास वर्षों पुराना है ।कहा जाता है कि लगभग 4000 वर्ष पूर्व बेबीलोन में प्रतिवर्ष 21 मार्च को नए साल के रूप में मनाने का प्रचलन था जो बसंत के आगमन का द्योतक था। विश्व के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न तिथियों और विधियों से नया साल मनाया जाता है। यदि हम अपने भारत की बात करें तो यह सर्वविदित है कि हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों से परिपूर्ण है अतः जाहिर तौर पर यहां नव वर्ष की तिथियां भी संस्कृति के अनुसार भिन्न भिन्न हैं। विभिन्न संप्रदायों के नववर्ष समारोह मनाने की तरीके में भिन्नता देखने को मिलती है। भारत के विभिन्न भागों में नववर्ष अधिकांशत चैत्र मास ( मार्च अप्रैल महीने )में मनाया जाता है।होला मोहल्ला और वैशाखी (पंजाब ),उगादि (आंध्र प्रदेश ),विशु,पोंगल और ओनम (तमिलनाडु और केरल) गुड़ी पड़वा( महाराष्ट्र) नवरेह( कश्मीर) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा( उत्तर और मध्य भारत)आदि कुछ प्रचलित नामों से इसे मनाया जाता है। चैत्र मास का वैदिक नाम मधुमास है जिसका अर्थ है “आनंद बांटता बसंत का मास।”इस मास में वनस्पति और सृष्टि खिल उठती है ,फसलें पक जाती हैं ,आम पर बौर आने लगती है और कोयल की स्वर लहरी गुंजायमान हो उठती है ।किसानों के लिए यह विशेष महत्व का अवसर होता है क्योंकि उन्हें उनके कड़े परिश्रम का फल मिलता है। जनमानस में उल्लास व उत्साह का संचार होता है, पेड़ पौधों और जंतुओं में भी नवजीवन का संचार होने लगता है । किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए यह अनुकूल और शुभ मुहूर्त माना जाता है । एक जनवरी को नए वर्ष के रूप में मनाने का प्रारंभ रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेंडर लागू करने के बाद हुआ। आधुनिक समय में भारत  में भी एक जनवरी को नव वर्ष के रूप में मनाने का प्रचलन बढ़ गया है ।विश्व के अधिकांश देशों में एक जनवरी को ही नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
नए वर्ष का स्वागत नई उम्मीद और नए संकल्प के साथ किया जाता है नया साल मनाने के पीछे मान्यता यह है कि साल का पहला दिन यदि हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है तो पूरा साल खुशी और उत्साह से भरा हुआ गुजरता है। बीते साल में जो कुछ भी उपलब्धि हासिल की या असफलताएं हाथ लगी उसका विश्लेषण करके एक नए उत्साह के साथ नई योजनाएं बनाते हैं, नए लक्ष्य निर्धारित करते हैं और उसे हासिल करने का दृढ़ संकल्प करते हैं।
भारतीय परंपरा के अनुसार नव वर्ष के शुभ अवसर पर एक दूसरे को शुभकामनाएं देना ,शुभ संदेश भेजना, बड़ों का आशीर्वाद लेना ,घरों में फूल और आम के पत्तों के वंदनवार सजाना ,रंगोली और अल्पना से आंगन सजाना, शोभा यात्रा निकालना,रक्तदान, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किए जाने का प्रावधान ।। किंतु वर्तमान में इसके स्वरूप में परिवर्तन आया है।आजकल नए वर्ष के स्वागत की तैयारियां क्रिसमस से शुरू हो जाती है।लोग अपने दूर दराज के मित्रों और रिश्तेदारों को ग्रीटिंग कार्ड्स भेजकर शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं।इकतीस दिसंबर की शाम को जगह जगह पर होटलों और रेस्तरां में न्यू ईयर पार्टियों का आयोजन किया जाता है जहां लोग एकत्र होकर नाच गाकर,स्वादिष्ट पकवानों के सेवन के साथ नए वर्ष का स्वागत करते हैं।विभिन्न चैनल रंगारंग कार्यक्रम प्रसारित करते हैं।अगले दिन एकता दौड़ का आयोजन भी किया जाता है।किंतु पाश्चात्य संस्कृति के अंधे अनुकरण के चलते इसका स्वरूप विकृत होता जा रहा है नौजवान युवक युवतियां मदिरा पान और फूहड़ता को ही आनन्द व खुशी की अभिव्यक्ति का परिचायक मान बैठे हैं । ऐसे बहुत से युवा देर रात तक शराब पीकर सड़कों पर लोटते हुए देखे जा सकते हैं। इनमें से अधिकांश तथाकथित उच्च वर्ग व सभ्य समाज के कहे जाने वाले होते हैं।
वास्तव में नए वर्ष को मनाने की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब हम अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्य को समझेगे।स्वयं की,अपने परिवार समाज और देश की आवश्यकताओं व उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने का संकल्प लेंगे। वर्तमान में आधुनिकीकरण की दौड़ में हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं ।आवश्यकता है कि वैश्विक संस्कृति को अपनाने के साथ-साथ हम अपने धरोहरों और सांस्कृतिक मूल्यों की भी रक्षा करें। नए साल और नए संकल्प को लिए चंद पंक्तियां अधोलिखित है:
नव वर्ष की नई सुबह है,
जीवन का नव प्रारंभ करें।
नई चाह हो, नई राह हो,
ऐसा कुछ आनंद भरें।
नवल वर्ष की हर्षित बेला में,
आशाओं के मंगल दीप जलाएं।
नई रीति और नई नीति से,
जीवन में नया उल्लास भर जाएं।
संबंधों में पनपी कटुता को,
दूर करें और हिल मिल जाएं।
नव निष्ठा, नव संकल्पों से,
आदर्शों का नया इतिहास रचाएं।
हिंसा अनैतिकता और उत्पीड़न को,
हिम शिखर हिमालय सा पिघलाएं।
शांति और सच्चाई के पथ पर चल कर,
प्रीति का नया गीत गुनगुनाएं।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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