लावणी छंद
कितना कुछ दे गया वर्ष यह ,कितना पीछे छूट गया ।
स्मृतियां ही शेष किसी की , भाग्य कहीं पर रूठ गया ।
शीला,सुष्मा ,अरुण जेटली ,मौन हो गए बैनो से ।
गए वर्ष में करी विदाई ,अश्रू पूरित नयनों से ।
मृत्यू भर ले गयी अंक में ।जीवन धागा टूट गया ।
कितना कुछ दे गया वर्ष यह ,कितना पीछे छूट गया।
सम्बन्धों की नैतिकता में ,तिक्त मधुर अहसास हुए ।
परिणय बन्धन बंधे कई मन , खूब हास्-परिहास हुए ।
नए मिले रिश्ते जीवन को ,साथ पुराना छूट गया ।
कितना कुछ दे गया वर्ष यह ,कितना पीछे छूट गया ।
दुर्घटना के क्रूर पाश ने ,जकड़ लिया कुछ अपनों को ।
माँ के आँचल में दुख भरकर ,काल छल गया सपनों को ।
कोई माया जाल बिछाकर , आस भरोसा लूट गया ।
कितना कुछ दे गया वर्ष यह ,कितना पीछे छूट गया ।
जो भी मान समय का करता ,बस वो ही विद्वान हुआ ।
सही मूल्य जीवन का पाया , उसका ही सम्मान हुआ ।
संघर्षो में तपा नहीं जो ,रह वो केवल ठूंठ गया ।
कितना कुछ दे गया वर्ष यह ,कितना पीछे छूट गया ।
— रीना गोयल ( हरियाणा)