गीत/नवगीत

सागर की लहरें

स्वर की लहरी पर मंद मंद , सागर की लहरें गीत गुनें ।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं ।
उन्मुक्त लहर के राज कई ,सागर के हृदय समाए हैं ।
लेता समेट बाहें फैला  ,जो अपने हुए पराये हैं ।
है नीरनिधि विस्तार लिए ,यह दृष्टि जहाँ तक जाती  है ।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं
नीला दुकूल सागर तन पर ,गहरे तल में मोती माणिक ।
उषा की लाली में निज निज ,जलयान लिए बढ़ते नाविक ।
लहरों की अद्भुत चंचलता ,बरबस मोहित कर जाती है।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं ।
जलधाम भरे उर नीर घना ,तक नील गगन के साये को ।
सैलाब थाम उर के भीतर ,है मौन नैन भर आये जो ।
तब तब सीमा के बंध तोड़ ,लहरें तट से टकराती हैं ।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं ।
— रीना गोयल ( सरस्वतीनगर)

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर