सागर की लहरें
स्वर की लहरी पर मंद मंद , सागर की लहरें गीत गुनें ।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं ।
उन्मुक्त लहर के राज कई ,सागर के हृदय समाए हैं ।
लेता समेट बाहें फैला ,जो अपने हुए पराये हैं ।
है नीरनिधि विस्तार लिए ,यह दृष्टि जहाँ तक जाती है ।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं
नीला दुकूल सागर तन पर ,गहरे तल में मोती माणिक ।
उषा की लाली में निज निज ,जलयान लिए बढ़ते नाविक ।
लहरों की अद्भुत चंचलता ,बरबस मोहित कर जाती है।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं ।
जलधाम भरे उर नीर घना ,तक नील गगन के साये को ।
सैलाब थाम उर के भीतर ,है मौन नैन भर आये जो ।
तब तब सीमा के बंध तोड़ ,लहरें तट से टकराती हैं ।
उठ- उठ गिर-गिर मद में बहकर ,जाने क्या क्या कह जाती हैं ।
— रीना गोयल ( सरस्वतीनगर)