लघुकथा – जीवन-चाहत
जीवन सिंह घर के बाहर किसी बुरी आशंका में खड़ा भयभीत था| “प्रेरणा का आज नतीज़ा आना था, कुछ बुरा न होवे, अभी तक घर नहीं आई| वाहर हालात भी ठीक नहीं रव सुख करें|” उसी समय एक मोटरसाईकल से खुशी से कूदती प्रेरणा पापा से लिपट गयी| प्रेरणा, “पापा, मैं क्लास में प्रथम आई और अब आपकी बेटी बाहरवीं पास हो गयी| मेरी बस निकल गयी थी| मुझे ये मेरा सहपाठी नमित गाँव छोड़ने आया| ये हर मुश्किल में मेरी पुरी मदद करता है|”नमित को दोनों चाय पीने को अंदर ले गए| जीवन सिंह को बातों में बेटी की खुशी और बातचीत ढंग से दोनों में गहरी दोस्ती की आशंका हुई| जीवन सिंह नमित को, “पिता जी क्या करते हैं, परिवार में कौन-कौन हैं?” पूछने लगें |
नमित, “माता-पिता दोनों दमे से बीमार रहते हैं| बहन का तो विवाह कर दिया,हमारी ज़मीन दो किल्ले है| बस उसी में गुज़ारा चलता है|”
नमित के जाने के बाद पिता जीवन सिंह बोले, “बेटी प्रेरणा, मैने तेरे लिये एक लड़का देख लिया साथवाले गांव में है और बीस किल्ले ज़मीन का मालिक है| बेटा, नौकरी भी न हो ज़मीन तो मुश्किल वक्त में सहारा होती है| अब तेरे सहपाठी की दो किल्ले ज़मीन में क्या गुज़ारा होता होगा, मुश्किलों में रहते होगे|”
प्रेरणा, “पापा, ये आप क्या कह रहे हो? मैं उसको पसंद करती हूँ| मुझे लगता है कि उसके साथ रहकर मैं खुश रहूंगी बाकी आपकी मर्ज़ी जो चाहो करो|”
जीवन सिंह बेटी का रिश्ता दूसरे गाँव पक्का कर जब वापिस आ रहा होता है तो उसको एक जानकार बेली मिल जाता है जो बताता है की ये लड़का तो बहुत शराबी और झगडालू है| यहाँ बेटी ना देना, किस्मत को रोयेगी|” आखिर पिता की आंखे खुल जाती हैं| वो बेटी को बोलता है, “अभी नमित के घर जाकर तेरा रिश्ता पक्का करके आता हूँ|” और वो बेटी मन की जीवन चाहत ढूढता है|
— रेखा मोहन