फूल कहता है
डाल से मुझको न तोड़ो, फूल कहता है।
उँगलियों से यूँ न मसलो, फूल कहता है।
देख मुझको क्यारियों में, बाल खुश कितने!
प्रेम से फुलवारी सींचो, फूल कहता है।
बाँधकर जूड़े में हरते, प्राण क्यों मेरे?
छेदकर मत हार गूँथो, फूल कहता है।
रौंदते हो पग तले, निर्दय हो क्यों इतने?
यूँ प्रदूषण मत बढ़ाओ, फूल कहता है।
ईश भी नहीं चाहता, कृति नष्ट हो उसकी।
मंदिरों में दम न घोंटो, फूल कहता है।
देख लो करते सुरक्षा, शूल भी मेरी।
कुछ तो हे इंसान! सोचो, फूल कहता है।
नष्ट तो होना ही है, यह सच है जीवन का।
वक्त से पहले न मारो, फूल कहता है।
मैं तो हूँ पर्यावरण का, एक सेवक ही।
शुद्ध साँसों को सहेजो, फूल कहता है।
सूखकर गुलशन में बिखरूँ, शेष है चाहत।
बीज मेरे फिर से रोपो, फूल कहता है।
बहुत ही सुन्दर सन्देश आदरणीया … काफी फूल उपवन में या रास्तों में गिरे होते हैं, उन पर पैर रखना मुझे पसंद नही.. पूजा के लिए कभी तोडा होगा वह भी जरूरी नहीं.