गीतिका/ग़ज़ल

फूल कहता है

डाल से मुझको न तोड़ो, फूल कहता है।
उँगलियों से यूँ न मसलो, फूल कहता है।

देख मुझको क्यारियों में, बाल खुश कितने!
प्रेम से फुलवारी सींचो, फूल कहता है।

बाँधकर जूड़े में हरते, प्राण क्यों मेरे?
छेदकर मत हार गूँथो, फूल कहता है।

रौंदते हो पग तले, निर्दय हो क्यों इतने?
यूँ प्रदूषण मत बढ़ाओ, फूल कहता है।

ईश भी नहीं चाहता, कृति नष्ट हो उसकी।
मंदिरों में दम न घोंटो, फूल कहता है।

देख लो करते सुरक्षा, शूल भी मेरी।
कुछ तो हे इंसान! सोचो, फूल कहता है।

नष्ट तो होना ही है, यह सच है जीवन का।
वक्त से पहले न मारो, फूल कहता है।

मैं तो हूँ पर्यावरण का, एक सेवक ही।
शुद्ध साँसों को सहेजो, फूल कहता है।

सूखकर गुलशन में बिखरूँ, शेष है चाहत।
बीज मेरे फिर से रोपो, फूल कहता है।

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]

One thought on “फूल कहता है

  • जवाहर लाल सिंह

    बहुत ही सुन्दर सन्देश आदरणीया … काफी फूल उपवन में या रास्तों में गिरे होते हैं, उन पर पैर रखना मुझे पसंद नही.. पूजा के लिए कभी तोडा होगा वह भी जरूरी नहीं.

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