किसान का मित्र नेवले का भी ‘अस्तित्व ‘गंभीर संकट में
‘नेवला ‘ एक ऐसा निष्पृह शब्द है, जिसके अवचेतन मन में याद आते ही एक ऐसे चुलबुले, तेज दृष्टि वाले, मटमैले, चितकबरे, सुरमुई रंग के छरहरे, फुर्तीले और बहादुर जीव की तस्वीर उभरने लगती है, जो हमारे बचपन के दिनों में गाँवों में हमारे घरों के आसपास अक्सर, रास्तों में, गलियों में हमारे रास्ते को काटकर आड़े-तिरछे ढंग से तुरन्त भाग कर सुरक्षित जगह जाते हुए दिखना, एक आम बात थी, आज उस वक्त को बीते 40-45 साल बीत चुके हैं। हमारे बचपन के दिनों में कुत्ते की प्रजाति की ही, उनसे जरा छोटी एक जंगली प्रजाति, जिसे हम पूरब की भाषा में सियार { हिन्दी में गीदड़ } कहते हैं, हमारे घरों के आसपास खेत खलिहानों में खूब पाये जाते थे, ये निशाचर प्राणी होते हैं, जो मरे हुए जानवरों के माँस को खाकर गिद्ध जैसे पर्यावरण के सफाईकर्मी का अतिमहत्वपूर्ण कार्य करते थे, ये सूर्यास्त के तुरंत बाद गोधूलि बेला में हुआँ-हुआँ के अपने समवेत और सामूहिक आवाज में आपसी संवाद स्थापित करते थे, मेरे उच्चशिक्षा हेतु शहर आने से दो-चार साल पहले ही अचानक हमारे क्षेत्र से गीदड़ रहस्यमय ढंग से ‘गायब ‘हो गये, पता चला हमारे क्षेत्र के सभी सियारों {गीदड़ों } को कोई ‘खाल के व्यापारी तस्करों का गिरोह ‘, सुनियोजित तरीके से उन्हें फँसाकर, मारकर, उनके खाल उतारकर सम्पूर्ण खात्मा कर दिए थे, उस समय, अब शाम को गीदड़ों की हुँआ-हुँआ की आवाज़ ‘एकदम शांत’ हो गई थी, उनका सामूहिक हत्या की जा चुकी थी। आज की उनकी स्थिति क्या है ?मुझे नहीं पता!
आज के समाचार पत्रों में एक और हृदयविदारक समाचार प्रकाशित हुआ है, हमारे प्रिय नेवले को भी प्रति वर्ष लगभग { 50000 } पचास हजार तक की संख्या में मनुष्य अपने स्वार्थ, हवश और लालच के चलते मार रहा है, नेवलों के चितकबरे बाल बहुत ही मुलायम और पेंटिंग के ब्रश के लिए एकदम उपयुक्त होते हैं, बस इसी हेतु इस नन्हें, भोले जीव की इतनी बड़ी संख्या में मानव रूपी नृशंस जीव द्वारा निर्मम ‘हत्या’ की जा रही है।
वाईल्ड लाईफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो { ड्ब्ल्यूसीसीबी } और वाईल्ड लाईफ ऑफ इंडिया { डब्ल्यू टीआई } ने देश भर में कई जगह छापे मारकर नेवले के बालों से बने हजारों ब्रश बरामद किए। उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में तो छापे में आश्चर्यजनक रूप से इस नन्हें, प्यारे जीव के 155 किलोग्राम बाल बरामद किया गया ?, जरा गंभीरतापूर्वक सोचिए कि इतनी बड़ी मात्रा में बाल इकट्ठा करने के लिए, कितने मासूम नेवलों की नृशंसता पूर्वक हत्या की गई होगी! एक आकलन के अनुसार इतने भारी मात्रा में वजन के बराबर बाल इकट्ठा करने के लिए कम से कम 3000 से 4000 के बीच नेवलों की ‘हत्या’ की गई होगी। इसके अतिरिक्त वहीं के बाजार से 56000 पेंटिंग ब्रश भी पकड़े गये।
दुनिया भर में नेवलों की कुल 35 प्रजातियाँ पाई जातीं हैं, जिनमें भारत में 7 प्रजातियाँ ही होती हैं। नेवला हर मौसम और पर्यावरणीय क्षेत्र में अपने को ढालने में अत्यन्त प्रवीण होता है। यह अदना छोटा सा अत्यन्त फुर्तीला जीव मेढकों, चूहों का अक्सर शिकार तो करता ही है, परन्तु आश्चर्यजनकरूप से भयंकर बिषैले नागों या साँपों से भिड़ंत होने पर भी, यह नन्हाँ सा जीव बड़ी ही दक्षता, फुर्ती और बहादुरी से उस बिषधर को मारकर टुकड़े-टुकड़े कर उसे खा जाता है, शायद ही कोई विरलतम उदाहरण हो, जिसमें नेवला साँप के बिषदंतों से मारा गया हो! इस प्रकार नेवला प्रत्यक्षतः किसानों की फसलों के दुश्मन चूहों और उनके जीवन के दुश्मन साँपों को मारकर उनकी अकथनीय सेवा करता है।
अत्यन्त दुख की बात है कि आज के दौर में हाथियों, गैंडों, डालफिनों, तेंदुओं, ह्वेलों आदि बड़े जीवों की हत्या और अवैध शिकार पर भारत और दुनिया भर में आवाज उठाने वाले बहुत लोग हैं, परन्तु दुखदरुप से इस नन्हें, अदने, छोटे जीव ‘नेवले’ के इतने बड़े पैमाने पर अवैध शिकार, संहार, महाविलोपन और महाविनाश होने के बावजूद, इसको बचाने के लिए और इनको मारने वाले अवैध शिकारियों और तस्करों के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाला ‘एक’ भी व्यक्ति या वन्य संरक्षण संस्था नहीं है! ध्यान रखने की एक और विचारणीय बात है कि प्राकृतिक संसार में एक छोटा जीव भी पर्यावरणीय दृष्टिकोण से पथ्वी के जैवमंडलीय ईको सिस्टम में उतना ही महत्वपूर्ण है, जितने कि बड़े जीव, अतः किसी भी जीव के इस धरती से विलुप्त होने से ‘सब कुछ’ असंतुलित होने का खत़रा सदा बना रहता है। इसलिए इस नेवले जैसे छोटे से प्राणी को बचाने की सरकार और जागरुक समाज की तरफ से भरपूर कोशिश होनी ही चाहिए।
— निर्मल कुमार शर्मा