बेटी
निखर जाती है बेटी के
हाथो की सुन्दरता में
चार-चाँद लगाती जाए
जब लगी हो हाथो में मेहंदी ।
मेहंदी ,रोसा और बेटी
लगती जेसे बहन हो आपस में
महकती ,निखरती जाए
जब लगी हो हाथों में मेहंदी ।
मेहंदी भी जाती है बेटी के
संग ससुराल में
बाबुल की यादों के आंसू केसे पोंछे
जब लगी हो हाथों में मेहंदी ।
जब न होगी बेटियाँ
तो किसे लगायेंगे मेहंदी
होगी बेटियां तब ज्यादा ही रचेगी
जब लगी हो हाथों में मेहंदी ।
— संजय वर्मा “दृष्टि”