व्यंग्य : कलयुग की छलयुग से खुसर-पुसर
आपका तो मुझे नहीं पता …! लेकिन हमें हमारे शिक्षकों ने बचपन में पढ़ाया था कि “रामचंद्र कह गये सिया से ऐसा कलयुग आयेगा,हंस चुगेगा दाना कौआ मोती खायेगा” शिक्षकों पर हमने भरोसा कर लिया।करना भी चाहिए था। उस समय लोग शिक्षकों पर भरोसा ही किया करते थे। हमें भी लगा कि चलो हम द्वापर,त्रेता,सतयुग का सुख भोगने से वंचित रह गये। किंतु जब कलयुग आयेगा तो हम कलयुग को देखेंगे एवं कलयुग का भरपूर आनंद लेंगे। किंतु हमारी आशाओं का दीप उस वक्त बुझ गया जब चाय वाले की टपरिया तले बैठे गाँव के सबसे बुजुर्ग श्री छलिया बब्बा जी के पावस मुखारविन्द से हमने यह सुना कि “घोर छलयुग चल रहा है” यह सुनकर हमारे कान तन गये मैं अंतस में बडे़ ही छल का बोध कर रहा था। कि हमें हमारे शिक्षकों के बताये अनुसार तो ‘ईमानदारी’ के साथ अब तक में ‘कलयुग’ आ जाना था । फिर भला यह छलयुग कैसी बला है? और किधर से कैसे आ टपका?
मैं ने बड़े ही आश्चर्य भरे स्वर में बुजुर्ग श्री छलिया बब्बा जी से पूछा – छलयुग के बारे में मैं ने पहले कभी नहीं सुना कृपया मुझे विस्तार पूर्वक बताने की कृपा करें।
तब छलिया बब्बा जी ने बताया कि आना तो कलयुग को ही था। लेकिन छल के प्रति लोगों की असीम आस्था और लगाव को देखते हुए कलयुग ने खुद से पहले छलयुग को भेजा है। इस छलयुग में सिवाय छल के कुछ और करना या सोचना व्यर्थ माना जायेगा। छलयुग में लोग लालच के शिकार होते हुए औरों के साथ छल करने के लिए हर पल उत्सुक रहेंगे।भक्त भगवान के साथ छल कर रहे हैं। माँ-बाप औलाद के साथ छल कर रहे हैं। औलाद माँ बाप के साथ छल कर रही है।न्यायधीश,न्यायालय के साथ छल कर रहे। शिक्षक,विद्यालय के साथ छल कर रहे। विद्यार्थी, शिक्षक,शिक्षा और स्वयं के साथ छल कर रहे हैं।व्यापारी व्यापार में छल कर रहे। नेता सरकार में छल कर रहे। प्रकृति किसान से छल कर रही।डाक्टर सामान्य मरीज को गंभीर रोगी बता कर छल कर रहे हैं। हर कोई हर किसी से छल करने को आतुर है। लोग अपने और पराये मे बिना किसी भेदभाव के छल कर रहे हैं। महिलायें पुरुष से छल कर रही हैं,पुरुष महिलाओं से छल कर रहे हैं।खिलाड़ी छल कर रहे खेल के साथ।अभिनेता छल कर रहे अभिनय के साथ। सरकार छल कर रही देश के साथ।टीवी चैनल्स छल कर रहे संस्कृति और संस्कार के साथ।सच छल कर रहा झूठ के साथ। झूठ छल कर रहा सच के साथ।मुकदमे छल के भरे पड़े हैं।गवाह छल से भरे पड़े हैं।
छलिया बब्बा जी के अनुसार इस घनघोर छलयुग में जो व्यक्ति छल कला में निपुण है वह दिन दूनी रात चौगुनी और दुपहरिया में अठगुनी तरक्की कर रहा है। जब कलयुग ने छलयुग के साथ खुसर-पुसर और छल करके खुद से पहले छलयुग को भेज ही दिया है और छलयुग में छल करने सा कोई दूसरा पुनीत काम हो ही नही सकता तो आप भी इस छलयुग में छलयुगी हो जायें। और सभी मिलकर इस छलयुग का आनंद लेते हुए छलयुग के गुण गायें।
तरह-तरह के छल छलयुग में सब छल से छले गये हैं
जिनको नही भरोसा छल पे वो दुनिया से चले गये हैं।
— आशीष तिवारी निर्मल