गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका – उदित हुए वो

उदित हुए वो नभ मंडल पर जैसे  चांद  उदय  होता है
शीतलता  तेजस्व  प्रखर जैसेदिनकर कुसुमय होता है
लोग  पराए  देस  पराया अंजाने  से  मुलाकात  नई
फिरभी अजनबी लगा अपना जैसे  मिला  हृदय  होता है
कदमों की आहट पर अपना उसके  पीछे  चलते  जाना
हरियाली चारों  ओर खिली जैसे नूतन किसलय होता है
व्यवहार नया सत्कार नया नव निर्मीत वाक़् प्रवाह नया
पल भर आंखों का मिलना यूं जैसे मन कहीं विलय होता है
कानों में अब भी गूंज रही वाणी उसकी ओजस्व भरी
है मुलाकात चिरस्मरणीय जेैसे आतम प्रभुमय होता है
दर्शनाभिलाषी आंखों  को पलभर केलिए विश्राम मिला
जन्मों  के प्यासे  अंर्तघट में जैसे  कुछ  रसमय  होता है
जब स्वप्न सुहाना है ऐसा तो  सत्य  कहां ले जाएगा
शायद जादू कुछ ऐसा हो जैसे मन विस्मय होता है
— पुष्पा , स्वाती

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है