जब भी
दिल दुखा कह न
पाये मन की बात
शब्द बने मनमीत
लो चल पड़ी कलम।।
जब भी
द्रवित हुआ मन
देख आपदा, विपदा
आतंक, अत्याचार, घटना
दिल भर आया
आँखे हुई नम
लो चल पड़ी कलम
करती बयान अनकहे जज़्बात।।
जब मौसम
ने ली अंगड़ाई
बहने लगी शीत बयार
या रिमझिम हुई बरसात
महकी सौंधी सौंधी खुश्बू
या पतझड़ की उदासी
लो चल पड़ी कलम
रंगी प्रीत, विरह के रंग में।।
जब आई
होली ,दिवाली,
लो चल पड़ी कलम
गुलाल उड़ाती
खुशियों के दीप जलाती।।
जब आई
26 जनवरी, 15 अगस्त
लो चल पड़ी कलम
रंगी देशभक्ति के रंग में
लहराती तिरंगा प्यारा।।
हुआ मन भारी
हुआ वक्त कड़ा
हुआ रंग कोई भी मौसम का
या ज़िन्दगी का
लो चल पड़ी कलम
करती बयां एहसास सारे
जो बोल न पाते लब।।
— मीनाक्षी सुकुमारन