अपनी भाषा / अपनापन: विदेश में मुशायरा और कवि सम्मेलन
कवि सम्मेलन हो या मुशायरा, काव्य-प्रेमियों के लिए हर्ष का एक अनोखा अवसर होता है, फिर अवसर विदेश में मिले और कवि सम्मेलन के साथ ही मुशायरा भी हो तो कहना ही क्या! सोने पे सुहागा. हमें यह सुहाना अवसर ऑस्ट्रेलिया में मिला. कविता और शायरी का यह संगम Indian Crescent Society of Australia Inc (ICSOA) द्वारा 15 दिसंबर, 2019 को शाम 5-30 बजे आयोजित किया गया. ऑस्ट्रेलिया के जाने-माने विद्वान, कवि, शायर आदरणीय अब्बास अल्वी जी को तो आप लोग जानते ही हैं, उन्हीं के प्रयासों से हिंदी-उर्दू कविता के इस मेल का आयोजन हुआ था.
इस आयोजन का एक और विशेष आकर्षण भारत के जाने-माने प्रोफेसर शायर फूलचंद मानव और प्रोफेसर योगेश्वर कौर का सम्मान करना भी था.
विदेश में कवि सम्मेलन और मुशायरे के साथ एक और जो अद्भुत नजारा देखने-सुनने को मिला, वह था ‘टेबिल टॉक’. सबसे पहले बात करते हैं ‘टेबिल टॉक’ की.
हम सबसे पहले पहुंचने वालों में से थे. हमें हॉल में जाते ही एक टेबिल पर बैठने को कहा गया. थोड़ी देर में प्रोफेसर फूलचंद मानव और प्रोफेसर योगेश्वर कौर भी आ गए, उनके लिए भी वही टेबिल नियत थी. उनके बैठते ही सामान्य परिचय के बाद शेरो-शायरी का जो दौर शुरु हुआ, वह अद्भुत था.
”कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चालो
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो
ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो
अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो
तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है
“फ़राज़” तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो.”
सारी शेरो-शायरी एकतरफा फूलचंद मानव की तरफ से चल रही थी-
”अपने हाथों की लकीरों
में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब
अपना बना ले मुझको
मुझसे तू पूछने आया है
वफ़ा के माने
ये तेरी सादा-दिली मार
ना डाले मुझको
ये तेरी सादा-दिली मार
ना डाले मुझको
ख़ुद को मैं बाँट ना
डालूँ कहीं दामन दामन
कर दिया तूने अगर मेरे
हवाले मुझको
कर दिया तूने अगर मेरे
हवाले मुझको
वादा फिर वादा है मैं
ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों
में सम्भाले मुझको
अपने हाथों की लकीरों
में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब
अपना बना ले मुझको.”
”सूरज से उजालों की खैरात न मांग,
तू जुगनू ही सही अपने जुनून पर ऐतबार रख.”
फूलचंद मानव की नायाब शायराना अंदाज के इस शेर को सुनकर दूसरी टेबिल पर बैठे दीपक से रहा नहीं गया, चलने में कुछ समस्या के चलते भी वे उछ्लकर हमारी टेबिल पर आ बैठे. उसके बाद तो फूलचंद जी जो गज़ल शुरु करते, उसका एक शेर वो पढ़ते, तो दूसरा दीपक, एक तरफ फूलों की महक थी, तो दूसरी तरफ रोशनी की दमक. ‘टेबिल टॉक’ का यह सिलसिला काफी देर तक चलता रहा. सच पूछिए तो हमें ऐसा लग रहा था, कि गोलमेज परिषद का-सा अद्भुत-मोहक नजारा थमे ही नहीं, लेकिन समय किसके लिए रुका है, जो हमारे लिए रुकता!
इसके बाद शुरु हुआ दूसरा सिलसिला, जो उस सुरीली शाम का मुख्य कार्यक्रम था. वह भी बहुत ही दिलकश रहा. एक-एक करके कवि-शायर आते गए और अपनी कविता-शायरी से मोहित प्रभावित करते चले गए. जो काव्य-रचनाएं प्रस्तुत की गईं, वे इस प्रकार थीं-
1.अस्सी पागल तेरे पिछे ; तू पागल किसी होर दे पिछे
2.कित्थे चांदी दे चमचे ने; ते कित्थे चमच्यां दी चांदी है
3.दो चार वाक़िफ़ से है दुनिया; अनजान न जाने कितने हैं
4.गाँव की गलियां, घर का आँगन सायं सायं करता है;
बस तुम आ जाओ वापस अपने देस में
5.कभी कभी मैं सोचता हूँ; ज़मीन भी माँ की तरह है
6.एक बन्दूक से तो यह जान सस्ती है
7.अब तो दोस्त भी दोस्त नज़र नहीं आते
8.जब अश्क-ए-समन्दर है; तो गहरायी भी क्या है
9.ओढ़ो चादर ज़ख्मों की; फिर देखो अपने सीने में
जब हमारी बारी आई, तो हमने कविता पेश की- ‘अपनापन’.
‘टेबिल टॉक’ में फूलचंद मानव एक शायर की भाषा के बारे में बता चुके थे, कि वे अपनी भाषा को ‘हिंदुस्तानी’ कहते थे. हमें यह बात बहुत पसंद आई थी. हमने अपनी कविता शुरु करने के पहले प्रस्तावना में कहा-
आप लोगों ने हिंदी-उर्दू-पंजाबी में बहुत अच्छी काव्य-रचनाएं प्रस्तुत कीं. मेरी कविता की भाषा हिंदी-उर्दू-पंजाबी न होकर ‘अपनी भाषा’ है और मेरी कविता का उन्वान है- ‘अपनापन’. इस ‘अपनी भाषा’ पर फूलचंद मानव सहित अनेक शायरों ने वाह-वाह, इरशाद और सुभान-अल्लाह से दाद दी. कविता इस प्रकार है-
अपनापन
इस संसार में
सूर्य की तेजस्विता है
चंद्रमा की चंद्रिका है
तारों की झिलमिलाहट है
सपनों की आहट है
जेबों में माया है
घरों में छाया है
सुखों की सजावट है
दुखों की बुनावट है
वाहनों का शोर है
आतंक चारों ओर है
महंगाई की मार है
सड़कों पर तकरार है
खुशियों की खिलखिलाहट है
अभावों की तिलमिलाहट है
नहीं है तो,
केवल अपनापन
और
हर एक चाहता है
अपनापन, केवल अपनापन.
अपनापन लेने की नहीं, देने की चीज़ है
एक बार किसी को अपनापन देकर तो देखो
जीवन में बहार आ जाएगी
ज़िंदगी गुलज़ार हो जाएगी
बस, देकर देखो अपनापन
क्योंकि,
हर एक चाहता है
अपनापन, केवल अपनापन.
लीला तिवानी
लखमीचंद तिवानी साहब की हिंदी ग़ज़ल ”तो कोई बात बने’ को भी बहुत सराहा गया.
तो कोई बात बने
पल-पल रंग बदलती दुनिया में
गिरगिट बने बिना रह सको, तो कोई बात बने.
कुदरत की चहकती-महकती दुनिया की
चहक-महक बनाए रख सको, तो कोई बात बने.
मिटती इंसानियत के फलक में
सजीले-चटकीले रंग भर सको, तो कोई बात बने.
पर्यावरण को प्रदूषण की मार से
बचाने में सहायक बन सको, तो कोई बात बने.
अपनी इज़्ज़त के लिए तरसने-लड़पने वालो
अपने मुल्क की इज़्ज़त बरकरार रख सको, तो कोई बात बने.
-लखमी चंद तिवानी
आनंद के इन पलों को विराम देने से पहले चंडीगढ़ से आए हुए फूलचंद मानव को Indian Crescent Society of Australia Inc (ICSOA) का लोगो देकर सम्मानित किया गया. फूलचंद मानव की कुछ विशेषताएं-
1.तीन भाषाओं में पी.एच.डी.
2.शायरी की 40 प्रकाशित पुस्तकें
3.तीन घंटे हमारे साथ रहे, लगभग डेढ़ घंटे तक शायरी सुनाई, सारी मूजबानी. हर शेर-ग़ज़ल के लेखक का नाम और विशेषता भी उनको याद थी. अपनी 3-4 लंबी-लंबी ग़ज़लें भी उन्होंने मौखिक ही सुनाईं.
समूचे कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग रेडियो के लिए भी हो रही थी.
सच में हिंदी-उर्दू-पंजाबी भाषाओं की सम्मिलित काव्य-रचनाओं का यह अनूठा सम्मेलन था.
चलते-चलते जनाब अब्बास अल्वी साहब को बहुत-बहुत शुक्रिया, जिन्होंने हमें इतने सुंदर कार्यक्रम की खुशबू से रू-ब-रू करवाया.
आज के इस ब्लॉग की ब्लॉग-संख्या की विशेषता- उल्टा-सीधा एक समान- 2442
देश-विदेश के कवि-शायरों का अपनापन मन को मुग्ध कर गया. शेर-ग़ज़लें और भी बहुत सुनने को मिले, शेष आपकी कलम से, आपकी ज़ुबानी. प्रस्तुत हैं दुष्यंत कुमार के 2 शानदार शेर-
1.कैसे आकाश में छेद नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो.
2.नज़र नवाज नज़ारा बदल न जाए कहीं,
ज़रा-सी बात है, मुंह से निकल न जाए कहीं,
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