डुगडुगी
युवा दिवस पर विशेष
”पबजी की थी लत, मां ने मोबाइल छीनकर तोड़ा तो बेटे ने कर ली खुदकुशी..”
”नाटक देखकर छात्र ने किया खुद के अपहरण का ड्रामा, मांगे ₹20 लाख”
और
”साल 2018 में 10,000 से ज्यादा स्टूडेंट्स ने ली अपनी जिंदगी, 10 साल में सबसे ज्यादा”
जैसे समाचार देख-सुनकर डुगडुगी बहुत चिंतित हो गई थी. उसने अपनी भूमिका को विस्तार देने का निर्णय लेकर डुग-डुग करना शुरु कर दिया.
”डुग-डुग डुग-डुग, लीजिए डुगडुगी बज गई.”
”क्या कह रही है यह डुगडुगी?”
”उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत.”
”यानी?”
”उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो.” डुग-डुग, डुग-डुग.
”डुगडुगी आज ऐसा क्यों कह रही है?”
”डुगडुगी का काम तो है बजना, यह जब-तब बजती ही रहती है, बस कोई सुनने, जानने, मानने वाला होना चाहिए.”
”इससे पहले भी यह डुगडुगी बजी है क्या?” एक जिज्ञासु की जिज्ञासा थी.
”यही डुगडुगी पहले कठोपनिषद् में बजी थी, फिर नरेंद्र ने बजाई.”
”कौन नरेंद्र?”
”नरेंद्र दत्त यानी जिसे उनके गुरु ने विवेकानंद बनाया. विवेकानंद यानी विवेक का आनंद. असल में सच्चा आनंद तो वही है, जो विवेक से उपजा हो.”
”यानी सच्चा आनंद भी दो प्रकार का होता है?”
”बिलकुल कुछ लोग तोड़फोड़-आगजनी-मारधाड़ को ही सच्चा आनंद मानते हैं, जबकि ऐसा है नहीं. सच्चा आनंद वह है, जिससे वर्तमान में भी आनंद हो और भविष्य में भी. तोड़फोड़-आगजनी-मारधाड़ से देश के जान-माल का नुकसान तो होता ही है, ऐसा करने वालों को बाद में पछतावा ही हाथ आता है.”
”फिर?”
”फिर क्या! वही, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत. उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो. यहां एक बात ज्ञातव्य है, कि सोये हुए को जगाया जा सकता है, जागते हुए भी जो सोया हुआ हो, उसे जगाना नामुमकिन है.” डुग-डुग, डुग-डुग.
”उठकर जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो, ऐसा विवेकानंद ने कहा था. छोटी-सी उम्र में विवेकानंद ने अपने को उठाया, जगाया और सारे संसार को भारतीय सभ्यता और संस्कृति से अवगत करवाया. आज उन्हीं महापुरुष की जयंती का परम पावन दिवस है, यह दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसलिए डुगडुगी बार-बार डुग-डुग करके युवा शक्ति को और सारी दुनिया को जगा रही है.” डुग-डुग, डुग-डुग.
”पूरी बात समझो. तुम युवा हो, शक्ति पुंज हो. शक्ति पुंज देश के लिए खड़ा हो जाए, तो देश निहाल हो जाए, मालामाल हो जाए. अपना हित अवश्य देखो, लेकिन जोश से नहीं, होश से काम करो. तोड़फोड़-आगजनी-मारधाड़ से सबको परेशानी होगी सो अलग, उसकी भरपाई भी जनता के टैक्स से होगी-
देश का नुकसान, अपना नुकसान
जागो युवा, बनो महान.” डुगडुगी ने मौन होने से पहले सीख देने का एक प्रयास किया.
युवा शक्ति ने डुगडुगी की बात पर विचार करने का निर्णय लिया.
”युवा शक्ति जब देश के हित काम करने और जगने को उद्यत होती है, तो देश जगता है और देश जगता है, तो अनेक महान विचारक, कलाकार, वैज्ञानिक देश को जगदगुरु बना देते हैं.” डुगडुगी अपनी भूमिका पर आश्वस्त थी.
लघु कथा बहुत अछि लगी लीला बहन . युवा शक्ति की हमेशा से जरूरत होती आई है लेकिन आज का युवा रास्ते से भटक गिया मलूम होता है जो गलत कामों में उलझ गिया है . इस युवा शक्ति को अब डुगडुगी की जरूरत ही है ताकि वोह अपनी शक्ति को देश की उनती की ओर कदम बढ़ा सके .
प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. बहकी हुई भ्रमित युवा शक्ति को अब डुगडुगी की जरूरत ही है ताकि वह अपनी शक्ति को देश की उन्नति की ओर अग्रसर करने के लिए कदम बढ़ा सके. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंगरेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। भारतीय सभ्यता के साधक नरेंद्र की खोज गुरु परमहंस की प्राप्ति के साथ भारतीय सभ्यता की ओर अग्रसर हुई. परमहंस जी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेंद्र परमहंस जी के शिष्यों में प्रमुख हो गए। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ।
जाग युवा जाग
कि तेरे जागने से देश जगेगा
देश जगेगा
और
हर क्षेत्र में विकास करेगा,
भ्रष्टाचार और दुराचार का
अंधियारा छंटेगा,
भारतीय संस्कृति और सभ्यता का सूरज
सारे संसार को
आलोकित करेगा,
हर क्षेत्र में भारत सबकी अगुआई करेगा.