गीतिका/ग़ज़ल

नेताजी कुछ कहो

हर दिन दूने रात चौगुने, भूख-प्यास के दाम हुए।
नेताजी! कुछ कहो तुम्हारे, नारे क्यों नाकाम हुए।

तिल-तिल दर्द बढ़ाकर जन का, जन से मरहम माँग रहे
तने हुए थे कल खजूर बन, कैसे नमते आम हुए।

रंग बदलते देख तुम्हें अब, होते हैं हम दंग नहीं
चल पैदल गलियों में आए, क्यों भिक्षुक हे राम! हुए।

नाम तुम्हारा जाप रहे हैं, घूस और घोटाले सब
तिजोरियों में छाँव छिपाकर, जनता के हित घाम हुए।

कल उसकी थी अब इसकी है, बार-बार टोपी बदली
लेकिन नमक हलाली के दिन, किस टोपी के नाम हुए?

वोट माँगने नोट बने हो, बन जाओगे चोट मगर
कसमें सारी भूल-भुलाकर, अगर ढोल के चाम हुए।

आश्वासन की फेंट मलाई, वादों का घृत बाँटा खूब
मगर हमारे नेताजी! अब हम भी सजग तमाम हुए।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]