नेताजी कुछ कहो
हर दिन दूने रात चौगुने, भूख-प्यास के दाम हुए।
नेताजी! कुछ कहो तुम्हारे, नारे क्यों नाकाम हुए।
तिल-तिल दर्द बढ़ाकर जन का, जन से मरहम माँग रहे
तने हुए थे कल खजूर बन, कैसे नमते आम हुए।
रंग बदलते देख तुम्हें अब, होते हैं हम दंग नहीं
चल पैदल गलियों में आए, क्यों भिक्षुक हे राम! हुए।
नाम तुम्हारा जाप रहे हैं, घूस और घोटाले सब
तिजोरियों में छाँव छिपाकर, जनता के हित घाम हुए।
कल उसकी थी अब इसकी है, बार-बार टोपी बदली
लेकिन नमक हलाली के दिन, किस टोपी के नाम हुए?
वोट माँगने नोट बने हो, बन जाओगे चोट मगर
कसमें सारी भूल-भुलाकर, अगर ढोल के चाम हुए।
आश्वासन की फेंट मलाई, वादों का घृत बाँटा खूब
मगर हमारे नेताजी! अब हम भी सजग तमाम हुए।
-कल्पना रामानी