व्यंग्य लेख : प्लास्टिक-युग
कौन कहता है कि यह कलयुग है? जी नहीं ,आपके कलों के युग कलयुग को प्लस्टिक ने अपने आगोश में छिपा लिया है। जहाँ देखें वहाँ प्लास्टिक ही छाया है। ये युग क्या है , प्लास्टिक की माया है। प्लास्टिक की काया है। सब कुछ प्लास्टिक में समाया है।सब पर प्लास्टिक की छाया है।हर आदमी को प्लास्टिक ही भाया है ।ओढ़ना , बिछौना, सिलना , पहनना ,गहना :सब में प्लास्टिक ही रहना। अब तो आज के आदमी ने प्लास्टिक भी खाया है।
जी हाँ, ये प्लास्टिक -युग है। एक समय था इतिहास में जिसे लौह – युग कहा जाता था। तब दैनिक ज़रूरत की वस्तुएँ बर्तन , अस्त्र -शस्त्र ,
औजार आदि सब कुछ लोहे से बनाया जाता था। उससे पहले पाषाण युग भी अपनी छटा बिखेर चुका था।लौह युग के बाद ताम्र – युग आया , तब ताँबे से उक्त सभी वस्तुओं को बनाया जाने लगा। जब से मुद्रा का विकास हुआ ,मुद्राएँ भी ताँबे से ही ढाली जाने लगीं।बाद में सोने , कांसा पीतल , मिश्र धातुओं आदि से बनाई गईं । अब आया है – प्लास्टिक -युग । क्या नहीं है, जो प्लास्टिक से न बनता हो।
आज खिलौने , इलेक्ट्रॉनिक उपकरण , सूटकेस, अटैची,फूल पत्ती, गमले, मुद्रा और अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएँ तो पुरानी बात हो गईं।
अब तो अंडे , गर्मकल्ला, प्याज़ , टमाटर , गोभी , चावल, आटा तक प्लास्टिक के बनाये जा रहे हैं। इस क्षेत्र में अपना पड़ौसी देश चीन सबसे आगे है। टीवी , मोबाइल , कम्प्यूटर आदि सभी उपकरण तो प्लास्टिक से ढाले ही जाते हैं। अब असली औऱ नकली सब्जी , फलों में भेद करना मुश्किल होता जा रहा है।दूध ,पनीर, घी ,मिठाई तक रासायनिक पदार्थों से बनाकर आदमी ने अपने अंत का इंतजाम बहुत पहले ही कर लिया है।यह सब युग के प्लास्टिकीकरण के कारण है।
अब कोई सरकार या जागरूक नागरिक कितना भी जोर लगा ले , इस युग के प्लस्टिक -युग बनाने से नहीं रोक सकता। पॉलीथिन के बिना आदमी का काम नहीं चलता ।यह भी प्लास्टिक ही है। क्रॉकरी ,बर्तन , हथियार, वाहन , जूते , कपड़े , बोतल, श्रृंगार सामग्री, चूड़ी , क्लिपें, बिंदी , हेंडिल , खिड़की , दरवाजे सर्वत्र एकक्षत्र साम्राज्य है प्लास्टिक का।
प्लास्टिक बंद न कर पाने के कुछ अहम कारण हैं। चोर को मारते हैं , चोर की अम्मा से इश्क है। जब चोर की अम्मा प्लास्टिक पैदा कर रही है , तो भला कौन रोक सकता है प्लास्टिक के आगमन को। नेताओं और सरकारों की हिम्मत चोर की अम्मा को छूने की भी नहीं है। क्योंकि वे उसका दूध पीकर ही तो पल्ल्वित -पुष्पित हो रहे हैं। चोरों की अम्माओं के नामे से उनकी तिजोरियां गरम हो रही हैं। राजनीति पनप रही है। जो देश नारों पर चलता, पलता ,ढलता हो , उसे तो नारे ही जिंदा रखेंगे न? एक नया नारा औऱ गढ़ लो , “प्लास्टिक हटाओ ” , बस हट गया प्लास्टिक ? इस तरह देश चलाने वालों को इश्क़ तो चोर की अम्मा से है। उसके विषय में सोचने की किसे फुर्सत है। क्योंकि उनके आँचल के नीचे छिपकर इन्हें उनका दूध जो पीना है। अरे! भाई ! चोर की अम्मा को भी जीना है। मरे सारा देश , उनकी बला से! उन्हें क्या? उन्हें तो फेक्टरियों में प्लास्टिक ढाल ढाल कर इंसान को उसके नष्ट होने तक निढाल कर देना है। जैसे फाँसी के फंदे पर तब तक लटकाया जाए , जब तक प्राण पखेरू न उड़ जाय: (hang to death). बस प्लास्टिक के इलास्टिक जजों का फैसला उसके पूरी तरह सांस निकल जाने तक है।
आदमी बेचारा है। वह रोटी को ओटी कहता है। पानी को पप्पा।उसने अपनी सद्बुद्धि राजनेताओं को गिरवी रख दी है। अपनी न सोच है , न समझदानी। दोनों ही खाली। बस इन राजनेताओं के पीछे -पीछे आज्ञाकारी भेड़ बनकर भेड़तंत्र के निर्माण के साक्षी बने हुए हैं। उन्होंने कहा -प्लास्टिक बन्द करो, तो वे भी कि चिल्लाने लगे :प्लास्टिक बन्द करो। रैली , बैनर , होर्डिंग, नारे , अखबार , टी वी , सेमिनार, भाषण ;सब में एक ही आवाज — प्लास्टिक बंद करो। अरे भाई ! किससे कह रहे हो । पहले खुद तो बन्द करों। लेकिन नहीं कुछ गरीब ठेले वालों , दुकानदारों और ग्राहकों पर जुर्माना ठोक दो , जेल में ठूँस दो। अखबार में छाप दो । बस कर्तव्य की इतिश्री हो गई । हो गई प्लास्टिक बन्द? प्रशासन की इतनी चुस्ती से सरकार के पास एक संन्देश तो अवश्य जाता है , अपनी पीठ अपने आप थपथपाने का। कितना बढ़िया काम कर रहा है हमारा प्रशासन ! 50 टन प्लास्टिक जब्त की गई ।
50 हज़ार जुर्माना लगाया गया। 25 को जेल भेज दिया गया। पर दूध देने और इनको पिलाने वाली इनकी अम्मा ? उसका क्या? उसे किसी ने पूछा तक नहीं कि तुम प्लास्टिक क्यों बेचते हो? उधर आँकड़े तैयार हो गए कि कितना प्लास्टिक जब्त किया गया। यह ही तो उपलब्धि है ,
जिस पर हम इतराते हैं।औरों पर सतराते हैं औऱ स्वयं प्लास्टिक के युग में मजे उड़ाते हैं। जी हाँ, ये प्लास्टिक -युग है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’