कविता
वो वादे याद है न तुम्हें
जिसके पूरे होने के इंतजार में
समय का एक-एक लम्हा
कितनी बेताबी से जिया है मैनें
तुमसे मिलन की उम्मीदों को
दिल के आईने में सजाकर
किया श्रृंगार प्रेम के चटक रंगों से
तन के पोर-पोर में समाई
तेरे एहसासों की छोटी सी छोटी आहट
नहीं था कोई बस मुझपर मेरा
दिल पर था इक हक तेरा
प्रतीक्षा के उन दिनों को
गिन-गिन कर उंगलियों पर
मिटाए थे मैंने हथेलियों से
दूरियों की रेखाएं
पर मैं खुश थी बहुत
इंतजार के तड़पते दिनों में भी
बस इस खुशी को दिल से लगाए
कि एकदिन शाम सिंदूरी आएगी
जो होगी मेरे प्रीत के नाम की
और रात होगी उजली उजली सी
मेरी खुशियों की रौशनी से नहाई हुई
अंधेरा गुम हो जाएगा सारा
हमारे एक होने के पथ से…..
और बिछ जाएंगे हरसिंगार के फूल राहों में
लुप्त हो जाएंगे इंतजार के मायूसीयत
बस वक्त के एक लम्हे वृत में
खड़े होंगे हम और तुम
भविष्य के पन्नों पर “प्रेम” सृजित के लिए।
— बबली सिन्हा