कविता

कविता

छूट जाते हैं
समय की आंधी में
कुछ सम्बन्धों से साथ

पर जो नहीं छूट पाता
वो है उसमें निहित मोह

मन अकारण ही
उसे याद करता
और मौजूदा वक्त
पराया सा लगने लगता

मन अशान्त
खोया-खोया सा रहता
उसकी कमी
वक्त के हर लम्हें में
खालीपन भर देता

कोई अर्थ नहीं
उन सम्बन्धों के होने न होने से
पर फिरभी
कुछ है अमूर्त अनजाना सा

जज्बातों की सुगबुगाहट
जो दिल को पोषित करती है
एहसासों की नरमी से

परिस्थितियां हंसती है
हम रोते हैं
और इन्हीं आसुओं में
मोह के सम्वेदनाओं को सिसकियों में समेटे
दिल के कोने में पुनः
उसे जज्ब कर लेते हैं।

— बबली सिन्हा

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]