गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कागज़, कलम, सियाही है,
रचना की अगुआई है।

वो जो हवा में उड़ता है,
जुमला सिर्फ हवाई है।

बहुत खुशी का है मौका,
ग़ज़ल, गीत से ब्याही है।

गीत जो आग लगाते थे,
अब तो राख उड़ाई है।

इतना ही सब लिखते हैं,
जिसमें खूब कमाई है।

लिखना नहीं है,बिकना है,
कहां बची कविताई है।

अपना दर्द छिपाके ‘जय’,
लिखता पीर पराई है।

— जयकृष्ण चांडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से