मनहरण घनाक्षरी छंद
आई देखो है लोहड़ी, खुशियाँ नहीं हैं थोड़ी,
बना बनाकर जोड़ी , खुशियाँ मनाइये ।
तिल गुड़ लाओ सभी , पूजा करो सब अभी ,
मिलजुल कर सभी , आग तो जलाइये ।
झूम – झूम नाच कर , दिलों को भी बाँच कर,
मन सदा साँच कर , एकता जगाइये ।
संक्रांति तो महान है , सबकी ही ये जान है ,
करते तिल दान हैं , संक्रांति मनाइये ।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’