रात चाँदनी गहरी-गहरी
रात चाँदनी गहरी-गहरी
प्रेम-प्रीत क्यू ठहरी-ठहरी ॥
चलो आज चाँदनी छू लें हम
कुछ मन की चाही कर लें हम i
जीवन नैया कब रुकी-रुकी
ग़म की नदियाँ गहरी-गहरी ॥
हम-तुम जाने फ़िर हों ना हों
ये मधुर-मिलने फ़िर हो ना हो !
दुनियाँ क्यों है ठहरी-ठहरी
क्यों नज़रें हैं प्रहरी-प्रहरी ॥
चलो आज बाँध लें बंधन
भर ले चाँदनी अंग-अंग !
कौन गाँव-गली,शहरी-शहरी
ये घड़ी कहाँ ठहरी-ठहरी ॥
कर नयनो में ओ मधुर कौल
अधरों से अब बोल-बोल !
तन-मन महक चंदन-चंदन
है शीतल बयार लेहरी-लेहरी ॥
— सविता वर्मा “ग़ज़ल”