क्षणिकाएँ
1 आंसूओं ने भी सीख लिया है चुपचाप बहना,
क्यों रुलाये और किसी को गम तो अकेले है सहना।
2
उदास रातों का कभी तो अंत होता
काश वो सितारा हमारे संग होता।
3
पढ़ सके जो मुझ को
आज तक न ऐसा चश्मा बना,
मैं वो आँसू हूँ समंदर का
जिसे कोई न ढूंढ सका।
4
न लफ्जों से न बातों से,
दर्द छलकता है सिर्फ आँखों से।
5
खामोशी जब शांत हो जाती है उसे मुर्दा कहते हैं
अश्क जब आँखों से बह जाए उसे पानी कहते हैं।
6
दिल को झूठा दिलासा देना भी जरूरी था
मेरे हक़ पर किसी और का हक़ ही भारी था।
7
एक औरत के प्यार
और आदमी के प्यार
में सिर्फ इतना सा अंतर है
औरत वक़्त मांगती है
और मर्द सिर्फ अदाएं।
8
एक बेबसी और हया में
सिर्फ इतना अंतर है
बेबसी क्षमा मांगती है
और हया इज्जत।’
— वर्षा वार्ष्णेय