दिल की गिरह में ….
दिल की गिरह में जो दबी सी थी।
याद शायद वो आपकी सी थी।।
कच्चे आँगन में यारियाँ पक्की।
ज़िन्दगी वो ही ज़िन्दगी सी थी।।
तेरे घर की वो राह पथरीली।
पैर कहते हैं मखमली सी थी।।
चाहे जुगनू या फिर शमा जैसी।
जैसी भी थी वो रोशनी सी थी।।
जाने दुनिया में कैसे फैल गई।
बात तो अब भी अनकही सी थी।।
धुंध में राह सूझती ही नहीं।
सुबह भी जैसे रात ही सी थी।।
दर से तेरे चले तो चल ही दिए।
इतनी गैरत तो लाज़िमी सी थी।।