गज़ल
किसी मासूम की हंसी में थोड़ा खिलकर देखिए
या किसी मज़लूम के अश्कों में ढल कर देखिए
छोड़ जाना हाथ में कातिल के खुशबू मरके भी
सीखना हो तो किसी गुल को मसलकर देखिए
ज़ख़्म अपने क्या दिखाएं आपको महफिल में हम
हो कभी फुर्सत तो तन्हाई में मिलकर देखिए
यूँ न हो पाएगा अंदाज़ा तपिश का दूर से
उतरिए इस आग में और खुद पिघलकर देखिए
कुछ न कुछ हर शख्स में अच्छाई मिल ही जाएगी
अपने हदूद-ए-गुरुर से बाहर निकलकर देखिए
— भरत मल्होत्रा