लघुकथा

झगड़ालू

“सीमा कोई अच्छी कामवाली बाई तो बता जो घर का पूरा काम कर सके।”
“अरे ,अभी तुने छः महीने पहले ही तो उस देवकी को काम पर रखा था और रहने के लिए जगह भी दी थी।”
“बहुत ही मक्कार थी वह तो। दिनरात अपने घर-परिवार की बात, बेटे-बहू का रोना और ढ़ंग से काम नहीं करना।हमेशा बेटे-बहू की बुराई करना और बहुओं को झगड़ालू बताना।ऐसे में यदि उसके काम में कुछ नुक्स निकालो तो फालतू की बहसबाज़ी शुरू कर देती थी।बात बात पर लड़ने-झगड़ने को भी आमादा रहती थी।मुझे तो लगता है कि इसीलिए उसके बहू-बेटे उसे साथ नहीं रखते थे और वह इतनी दूर आकर हमारे घर काम करने आ गई थी।”
“लेकिन रीना तेरे बेटा-बहू भी तो तेरे साथ नहीं रहते!”
“अरे ,वह तो हम लोग खुद ही किसी के बंधन में नहीं रहना चाहते,तेरे जीजाजी को भी पसंद नहीं है वरना तो बहू-बेटा तो बुलाते नहीं थकते।”
रीना ने कह तो दिया लेकिन वह स्वयं अपने स्वभाव को लेकर कुछ सोच में पड़ गई।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009