झगड़ालू
“सीमा कोई अच्छी कामवाली बाई तो बता जो घर का पूरा काम कर सके।”
“अरे ,अभी तुने छः महीने पहले ही तो उस देवकी को काम पर रखा था और रहने के लिए जगह भी दी थी।”
“बहुत ही मक्कार थी वह तो। दिनरात अपने घर-परिवार की बात, बेटे-बहू का रोना और ढ़ंग से काम नहीं करना।हमेशा बेटे-बहू की बुराई करना और बहुओं को झगड़ालू बताना।ऐसे में यदि उसके काम में कुछ नुक्स निकालो तो फालतू की बहसबाज़ी शुरू कर देती थी।बात बात पर लड़ने-झगड़ने को भी आमादा रहती थी।मुझे तो लगता है कि इसीलिए उसके बहू-बेटे उसे साथ नहीं रखते थे और वह इतनी दूर आकर हमारे घर काम करने आ गई थी।”
“लेकिन रीना तेरे बेटा-बहू भी तो तेरे साथ नहीं रहते!”
“अरे ,वह तो हम लोग खुद ही किसी के बंधन में नहीं रहना चाहते,तेरे जीजाजी को भी पसंद नहीं है वरना तो बहू-बेटा तो बुलाते नहीं थकते।”
रीना ने कह तो दिया लेकिन वह स्वयं अपने स्वभाव को लेकर कुछ सोच में पड़ गई।