बहुत हो चुके बेघर अपने ही घर में हम,
हम अब न सहेंगे जिंदगी में दर्दे गम।
फूलों की घाटी में शूलों का राज होगा खत्म,
हम हिंदुस्तानी हिंदुस्तान के नहीं हैं किसी से कम।
बनाकर हर जख्म को जख्म की दवा,
फूलों की घाटी में सनसनाती है हवा।
ईमान को ईमान की कद्र होनी चाहिए,
इंसान को इंसान पर रहम होना चाहिए,
घाटी के लालों को अब घाटी का भाल चाहिए।
संस्कृत बनेगी सभ्यता भी बचेगी,
भारतीयता दानवों से मुक्त हो रहेगी।
स्वर्ग बचाने को अस्थि वज्र चाहिए,
संस्कृति बचाने को एक इंद्र चाहिए।
— निशा नंदिनी