“अवाक”
दो भक्त मंदिर प्रांगण में खड़े थे. पहला कुछ देर तक मंदिर की भव्यता और मूर्ति की सौम्यता को निहारने के बाद बोला, “इसके निर्माण में मैंने रात-दिन एक कर दिये. पिछले दिनों यह नगाड़ा सेट लाया हूं. बिजली से चलने वाला. अरे भाई, आज के जमाने में बजाने की झंझट कौन करे?” फिर स्विच ऑन करते हुए कहा, “लो सुनो! तबियत बाग-बाग हो जायेगी.” बिजली दौड़ते ही नगाड़े, ताशे, घड़ियाल, शंख सभी अपना-अपना रोल अदा करने लगे. पहला हाथ जोड़कर झूमने लगा. दूसरा मंद-मंद मुस्करा रहा था. जब पहले के भक्ति भाव में कुछ कमी आई तो दूसरे ने बताया, “उधर मैंने भी एक मंदिर बनाया है. आज अवसर है, चलो दिखाता हूँ.”
”चलो देख लेते हैं.” कहकर दोनों भक्त दूसरे मंदिर में चले गए.
”हे भोलेनाथ, आप तो जानते ही हैं, कि मैंने अपनी सीमित सामर्थ्य के अनुसार यह सामान्य-सा दिखने वाला मंदिर बनवाया है. आप तो ठहरे भोलेनाथ, इसी में खुश हो गए और वरदान दे दिया, कि इस मंदिर को जो भी देखेगा, उसे इसमें दिव्यता के दर्शन होंगे.” मस्तक झुकाते हुए भक्त बोला.
”यह तुम्हारे मन की आवाज है.” मंदिर में आकाशवाणी हुई.
”हे पार्वतीपति, आपने मुझे पार्वती गोयल से मिलवाया. कितने प्यार से चंदन घिस-घिसकर वह आपके मस्तक को सुसज्जित करती थी. मैं भी चंदन घिसकर आपको लगाना चाहता हूं, उससे पहले उसी चंदन से आप मेरे मस्तक को शोभायमान कर देते हैं. धन्य हैं आप!”
”मुझमें-तुझमें कुछ भेद नहीं.” आवाज पुनः गुंजित हुई.
”हे कैलाशनाथ, आपने मुझे कैलाश भटनागर से मिलवाया. 94 साल की वह युवा दीदी पूर्णतः शाकाहारी है. पार्टी में उसकी ऑस्ट्रेलियन सहेली सबके लिए कुकीज बनाकर लाई थी, एक छोटी डिब्बी में उसके लिए विशेष रूप से बिना अंडे वाली 5 कुकीज बनाकर पैक करके आई थी. कैलाश दीदी भावविभोर हो गई थीं. मैं भी आपके लिए प्रेम से जो कुछ लाता हूं, आप प्रेम से भोग लगाते हैं.”
”मैं भी भाव का भूखा हूं.” आवाज ने कहा.
एक केले के भोग से मंदिर में खड़े सभी भक्तजनों को तृप्त होते देख पहला भक्त अवाक रह गया था.
इंसान तो इंसान, भगवान भी प्रेम का भूखे हैं. प्रेम ही भगवान है. प्रेम की भावना के आगे सब अवाक रह जाते हैं.