डंक (कविता)
एक छोटा सा प्रयास रंग लाई
दबी सहमी सी रहने वाली गुड़िया
वर्षों बाद खुल कर मुस्कूराई।
हर रोज पूछती थी
माँ मुझे बंदी क्यों बनाई
क्या मैं तेरी बिटिया नहीं हूँ माई ?
चुपके से वह आँसू पोछ लेती थी
आत्म रक्षार्थ दाव-पेंच
बिटिया का आत्मविश्वास बना
अट्ठारह वर्ष की होते ही
बिटिया को मिर्ची पाउडर
बहुत महत्वपूर्ण है यह समझाने लगी।
जूडो-कराटे से बढ़कर यह
ब्रह्मास्त्र काम आयेगा
मेरी कोमल कली चंडी बन जाना
इतनी ही इच्छा है मेरी
मेरी परवरिश पुरस्कृत कर देना।
वह पूरे उत्साह से सज-धज कर
आज बागों में निकली
ओह यह तितली नहीं मधुमक्खी है
ऐसी फिरकी सुनने को मिली।
उसके होठों पर मुस्कान छाई
आज नाजों से पली बिटिया
खुल कर खुले आँगन में मुस्कूराई।
— आरती राय