ग़ज़ल
सारे शहर में चर्चा ये सरेआम हो गया
दोस्ती से ऊपर हिंदू इस्लाम हो गया
खड़ी कर दी मज़हब की दीवार तो सुन
अब भगवान मेरा परशुराम हो गया
गिरे हो तुम जबसे मेरी इन नज़रों में
तेरी नज़रों में काफ़िर मेरा नाम हो गया
कामयाबी मिल सकती थी तुझको लेकिन
नापाक था साजिश तेरा जो नाकाम हो गया
अजायबघरों में रखा ताज गर तेरा है
समझ ले भयानक तेरा अंजाम हो गया
लिखे शे’र मां पर तो तुझे मिली शोहरतें
किया तौहीन औरतों की बदनाम हो गया
दिखा नहीं जो कुछ दिनों तक अख़बारों में
तूने समझा कि ‘कौशिक’ गुमनाम हो गया
:- आलोक कौशिक