पंडित जी
पंडित मोहन लाल जी व्यास यदि दुनिया में होते तो सौ वर्ष के होते | बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी व्यास जी का जीवन काफी संघर्षमय रहा , दस वर्ष की अल्पायु में पालनहार पिता के असामयिक निधन के बाद घर परिवार की जिम्मेदारी इनके नाजुक कंधों पर आ गई , मां विधवा बहन छोटा भाई , पाच लोगों का पेट पालन पूजा पाठ श्लोक गायन मंदिर में कर अपना पेट काट परिवार को पालते |स्वयं साथ साथ रात्री पाठशाला में पढते पर भाई को पढाया पैरों पर खड़ा किया भाई का अपना घर बसाया जैसे तैसे कर प्रभाकर की परीक्षा जो दसवीं के समकक्ष मानते के आधार पर सरकारी सेवा में आये, पढने के प्रति बचपन से लगाव था पर प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण ज्यादा नहीं पढ पाये पर मन में ठान लिया कि मैं अपने बच्चों को अवश्य पढाउंगा |कॉलेज के आगे उनके कदम ठिठकते थे ,न केवल सोचा वरन अल्पवेतन भोगी होते हुवे भी सातों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई , शिक्षा के प्रति समर्पण इतना कि समाज के विरोध बावजूद बेटी व बहुओं तक को पढने को प्रेरित किया |
कर्मकांडी शुद्ध शाकाहारी ब्रामण होते हुवे भी प्रोगेसिव विचारधारा भी थी स्त्री शिक्षा समर्थक बाल विवाह के विरोधी थे ,लड़का लड़की में सम भाव स्नेह रखते थे , सादा जीवन लेकिन उच्च विचारों के धनी पंडित जी ने भात्र प्रेम वशीभूत समाज के विरोध के बावजूद हरिजन आंदोलन में भाई का साथ दिया |
हिंदी संस्कृत के प्रकांड पंडित और उनके साधारण परिवेश को देख उनकी विलक्षण प्रतिभा अंदाज नहीं लगताथा , मगर ये सच्चाई है न केवल स्वयम् के परिवार विधवा ताई बहन और भाभी को पूरा मान सम्मान देते थे ,उनके त्याग और परिश्रम का ही प्रतिफल के फलस्वरुप पांचों पुत्र उच्च पद पर आसीन हुवे, पुत्र ही नहीं पोत्र प्रपोत्र उनकी पत्नियां सभी शिक्षित है| कथावाचक पंडित व्यास जी के परिवार में इतना शिक्षित होना समाज के लिये अनुकरणीय उदाहरण है|
— गीता पुरोहित