सिर्फ लाल
मेरी माँ ने एक बार कहा था ,
बेटे जहा गणतंत्र का झंडा ,
फहराया जाये ,
26 जनवरी को ,
वहा ! उस जश्न मे मत जाना ,
उस झण्डे के नीचे मत जाना ,
ये सफेदपोश ,
उस झण्डे को दागदार कर दिये है ,
हर साल इसकी छाया मे ,
इसके साथ बलात्कार करते है ,
जर्जर बना दिये है इसे ,
अब टूटने ही वाली है – यह आजादी !
सुनो बेटे! यह सुनो बेटे! सुनो –
यह गीत किसी कवि का है –
“बाहर न जाओ सैया ,
यह हिन्दुस्तान हमारा ,
रहने को घर नही है ,
सारा जहा हमारा है” ,
रेडियो पर सुनते ही यह गीत ,
मै ठठा कर हंसा था ,
और माँ से कसम लिया था –
जब तक मै मुखौटे नोचकर ,
इनका असली रूप / तुम्हारे सामने,
नही रखूँगा ,
लानत होगी मेरी जवानी की ,
धिक्कार होगा मेरे खून का ,
इस झण्डे को ,
अब बिल्कुल लाल करना होगा माँ ,
तुम मुझमे साहस भरो ,
लाल क्रांति का आहवान दे रही है माँ ,
ताकि तिरंगे के नीचे कोई रंग न हो ,
कोई रंगरेलिया न हो ,
इसे एक रंग मे रंगना होगा ,
एक रंग मे सिर्फ लाल ,
सिर्फ लाल माँ !
सिर्फ लाल…
— रूपेश कुमार